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पुणे रेलवे के अकार्यक्षम पीआरओ का ट्रांसफर आखिर कब?

पुणे- मध्य रेल पुणे मंडल के अकार्यक्षम जनसंपर्क अधिकारी मनोज झवर बीते 7 सालों से एक ही जगह अंगद की तरह पैर जमाकर बैठे है। इनकी कार्यप्रणाली को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये जनता के संपर्क अधिकारी कम और कुछ चुनिंदा अपने चहेते लोगों के अधिकारी अधिक है। रेलवे से संबंधित समाचार को दबाना, कुछ चुनिंदा पत्रकारों को देना, भ्रष्टाचार, यात्री समस्या से जुडे सवालों को पूछने वाले पत्रकारों को पत्रकार परिषद में पीछे बैठाना और अवसर न देना इनकी कार्यप्रणाली का एक हिस्सा बन चुका है। इनका ट्रांसफर न होने को लेकर रेलवे के अधिकारियों में असंतोष की भावना है। बाकी अधिकारियों की समय से पहले ट्रांसफर हो जाता है, फिर आखिरकार जनसंपर्क अधिकारी का तबादला कब होगा,ऐसा सवाल अधिकारी उठा रहे हैं।

 

रेलवे से संबंधित जानकारी मीडिया को उपलब्ध कराने में नाकाम

मध्य रेल पुणे मंडल के जन संपर्क अधिकारी मनोज झवर ने पुणे रेल मंडल का पदभार 25/06/2015 संभाला तब से लेकर आज तक ये पुणे मंडल मे घटित घटना की जानकारी सभी पत्रकारों को नही देते। हाल ही में एक यात्री की जान आरपीएफ के एक जवान ने तत्परता दिखाते हुए बचाया, लेकिन पीआरओ मनोज झवर से इस बारे में एक पत्रकार ने पूछा तो उनका जबाब हमेशा की तरह बडा ही अटपटा रहा। उन्होंने कहा कि इस तरह की कोई घटना घटित नही हुई साथ ही यह कहा कि आरपीएफ की जानकारी उनके डीएससी से लीजिए। अर्थ यह निकलता है कि पीआरओ को घटना की जानकारी नहीं थी यह फिर न्यूज को दबाने का प्रयास कर रहे थे,या आरपीएफ से जुडा विषय था,श्रेय उनको मिलेगा, इसलिए जानकारी को टाल रहे थे? जबकि पीआरओ की पोस्ट इसलिए होती है कि मीडिया,जनता से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना।

 

सीपीआरओ 24 घंटे उपलब्ध,पुणे पीआरओ नदारद

जबकि मुंबई में पदस्थ सीपीआरओ शिवाजी सुतार मीडिया के लिये चौविस घंटे उपलब्ध रहते हैं। मनोज झवर ने 25/06/2015 से पत्रकारों के साथ लगातार भेदभाव कर रहे है। रेलवे नियम के अनुसार तीन से अधिकतम पाँच वर्ष में इनका तबादला (ट्रांसफर) होना चाहिए। लेकिन इनको लगभग सात वर्ष हो गया,इनका ट्रांसफर नही हुआ। यही वजह है की इनकी मनमानी अपनी चरम सीमा पर है। जीएम से लेकर डीआरएम,वरिष्ठ वाणिज्य मंडल रेल प्रबंधक, सहा वाणिज्य रेल मंडल प्रबंधक,स्टेशन मास्टर आदि और भी अधिकारियां के ट्रांसफर हो रहे है। लेकिन पुणे मध्य रेल मंडल के पीआरओ के लिये क्या कोई स्पेशल नियम है जो आज तक इनका ट्रांसफर नहीं हुआ?

 

पत्रकार परिषद पत्रकारों के साथ भेदभाव

वही अगर रेल्वे के किसी अति वरिष्ठ अधिकारियों की प्रेस कांफ्रेंस होती है तो वहां भी इनकी मनमानी देखने को मिलती है। ये प्रेस कान्फ्रेंस में अपने खास लोगों को जो इनके द्वारा बताए गऐ सवाल पूँछते है उनको पहले मौका देते है, जो रेल्वे में चल रहे भ्रष्टाचार के बारे अति वरिष्ठ अधिकारियों से प्रश्न पूंछते है उन्हे यह मौका नही देते,और यह प्रेस कान्फ्रेंस के सामाप्त होने की घोषणा कर देते है। जिससे पुणे मंडल में जो अनाधिकृत गतिविधियों तथा सुरक्षा जैसे मुददों पर अति वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान नही जाता, पुणे में यात्रियों से संबंधित समस्या पर चर्चा नही हो पाती।

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