बेंगलूर-कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया है। येदि के इस्तीफे के बाद जहां भाजपा नए मुख्यमंत्री के चुनाव में जुटी है,तो वहीं कर्नाटक में सबसे असरदार लिंगायत मठों के प्रमुखों ने येदि को हटाने के फैसले को गलत बताया है। मठाधीशों ने चेतावनी दी है कि भाजपा को इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा। येदि पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 2013 में भाजपा ने उन्हें हटाया था। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा में भाजपा महज 40 सीटों पर सिमट गई थी।
कर्नाटक के मशहूर लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बासवलिंगा ने कहा,मभाजपा ने बिना सोच-विचार के यह फैसला लिया है। लिंगायत मठाधीशों ने येदियुरप्पा को अपना कार्यकाल पूरा करने देने की मांग की थी,लेकिन लगता है भाजपा एक बार फिर भ्रमित हो गई है। राज्य के सभी मठों के मठाधीश एक बार फिर इस मुद्दे पर बैठक करेंगे। इसके लिए उनसे संपर्क किया जा रहा है। इस बात की पूरी संभावना है कि यह बैठक सोमवार को ही आयोजित की जाए।
लिंगायत समुदाय को साधना बड़ी चुनौती
शरन बासवलिंगा ने बताया कि येदियुरप्पा के इस्तीफे को लेकर मठाधीशों की बैठक में आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा। इससे पहले,रविवार को भी लिंगायत समुदाय के सभी मठाधीशों ने बैठक की थी। बैठक में बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक का सीएम बनाए रखने की मांग करते हुए चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया तो राज्य में बड़ा आंदोलन किया जाएगा। हालांकि कल से आज तक येदियुरप्पा आलाकमान का फैसला स्वीकार करने की बात कह रहे हैं।
राज्य के 5 हजार मठाधीश विरोध में उतरे
शरन बासवलिंगा ने कहा,यहां के मठाधीश्वर और करीब 5 करोड़ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि भाजपा आलाकमान इन सभी हालात पर विचार करने के बाद ही फैसला लेगा। अगर बिना विचारे फैसला किया,तो राज्य के 5 हजार मठाधीश्वरों का एकजुट विरोध केंद्र को झेलना पड़ेगा।
राज्य की 100 विधानसभा सीटों पर असर
कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय का हिस्सा 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से करीब 90 से 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का असर है। वहीं,राज्य की लगभग आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को हटाने के बाद की राह आसान नहीं होगी। उन्हें हटाने का मतलब इस समुदाय के वोट खोने का खतरा मोल लेना होगा।