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कचरा से मलाई खाएंगे और विपक्ष को भी खिलाएंगे

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा…अब खाऊंगा और विपक्ष को भी खिलाऊंगा

पिंपरी- 2014 में देश का चौकीदार एक नारा दिया था कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा. आज पिंपरी चिंचवड मनपा की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने इस नारे को बदलकर खाऊंगा और विपक्ष को भी खिलाऊंगा ऐसा कर दी है.इसका ताजा उदाहरण कचरा टेंडर है जिसे पक्ष-विपक्ष ने मिलकर पारित किया. यह वही कचरा टेंडर है जिसे भाजपा के स्थानीय नेता,पदाधिकारी भ्रष्ट्राचार होने की बात कहकर रद्द कर चुके थे. उस समय की तात्कालीन स्थायी समिति सभापति सीमा सावळे थी. मात्र 6 महिने के भीतर वही ठेका, वही ठेकेदारों को दिया गया.अब ऐसा क्या जादू हुआ कि सत्ताधारी-विपक्ष को दोनों ठेकेदार अच्छे लगने लगे. जिस कचरे के ठेके से बदबू आ रही थी अब उसी से खूशबू आने लगी. क्या यह माना जाए कि घटस्थापना के दिन जमकर लक्ष्मी पूजा हुई. पक्ष-विपक्ष की दिवाली गोड हुर्ई.
आओ इस जादूई खेल को समझने की कोशिश करते हैं. सीमा सावळे स्थायी समिति सभापति थी .कचरा टेंडर निकाला जाता है. टेंडर में भ्रष्ट्राचार की भनक लगते ही भाजपा के विधायक जगताप का विरोध होता है और टेंडर रद्द होता है. आयुक्त 4 टेंडर फेर निविदा वाला 15 सितंबर को निकालते हैं. 26 सितंबर को प्री मीटिंग होती है जिसमें 21 लोग हिस्सा लेते है. निविदा आखिरी स्टेज पर है. इसी दौरान 26 सितंबर को महासभा की मासिक बैठक होती है. जिसमें सत्ताधारी की ओर से उपसूचना देकर 450 करोड रुपये का कचरा टेंडर को पारित किया जाता है. महासभा में विरोधी नेता दत्ता साने, शिवसेना गुट नेता राहुल कलाटे, मनसे के सचिन चिखले समेत कई वरिष्ठ नगरसेवक मौनी बाबा बनकर प्रस्ताव को पारित कराने में मूक सहमति दिखाते है. दबे पांव खेल को एक कान दूसरा कान नहीं समझ पाता. दूसरे दिन समाचार पत्रों में खबर छपती है तो विपक्ष की ओर से बयान आता है कि प्रस्ताव कैसे पारित हुआ हमें खबर नहीं. सत्तारुढ नेता एकनाथ पवार का बयान आता है कि हम उससूचना के बारे में विपक्षनेता समेत सभी पार्टियों के गुटनेताओं को जानकारी दी थी. एक कहावत है कि हम ऐसी चोरी करते है कि अल्लाह ताला को खबर नहीं. मगर यहां कहावत उल्टी है. पक्ष-विपक्ष सबको चोरी की खबर रहती है. सरल शब्दों में कहा जाए तो सारे लोग मैनेज किए जाते हैं.
अब खेल नंबर-2 खेला जाता है. उसी दौरान मंगलवार को स्थायी समिति की साप्ताहिक बैठक होने वाली होती है. एक दिन पहले विरोधी नेता दत्ता साने, सत्तारुढ नेता एकनाथ पवार,शिवसेना के गुटनेता राहुल कलाटे, मनसे के सचिन चिखले, महापौर राहुल जाधव शिक्षा समिति सभापति सोनाली गव्हाणे, उपसभापति राजश्री बाबर, शारदा सोनवणे, सुवर्णा बोरडे दिल्ली मनपा के स्कूलों का निरिक्षण करने निकल जाते है. दूसरे दिन आयुक्त श्रावण हार्डीकर अटैच हो जाते है. इस दौरे में राष्ट्रवादी-शिवसेना के शिक्षण समिति सदस्य शामिल नहीं होते. यह दौरा सरकारी दिखाया गया है.राष्ट्रवादी वाले कहते है अपने खर्च से गए. सत्तारुढ नेता एकनाथ पवार को पत्रकारों के सामने सफाई देनी पडती है कि दिल्ली मौज मस्ती के लिए नहीं गए. जबकि किसी ने दौरे के बारे में सवाल खडा नहीं किया.मतलब चोर के दाढी में तिनका. चर्चा है कि दौरे का सारा खर्च कचरा टेंडर के दोनों ठेकेदारों ने उठाया. इधर रास्ता साफ,कोई विरोध करने वाला नही. शिवसेना के गावडे, और राष्ट्रवादी के चार में से एक सदस्य गीता मंचर ने स्थायी समिति बैठक में कचरा टेंडर पर विरोध दर्ज कराया. बाकी राष्ट्रवादी के तीन सदस्यों का मूक समर्थन रहा. दूसरी ओर विरोधी नेता दत्ता साने का कहना है कि वे दिल्ली से अपने पार्टी सदस्यों को विरोध करने का आदेश दिया था. अगर ऐसा है तो सदस्य विरोध क्यों नहीं किए? या दामन दागदार न हो जाए बचने के लिए अब ड्रामेबाजी की जा रही है. स्थायी समिति में यह टेंडर पारित होता है और उन्हीं दो ठेकेदार बीवीजी, एंथोनी को प्राप्त होता है. चर्चा है कि दोनों ठेकेदार सभी गुटनेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता के घर व्यक्तिगत जाकर मुलाकात करते हैं और मामला सेट करके टेंडर पास कराने में सफल होते है.
कुछ मीडिया में जब मामला उछला तो सभी पार्टियों के नगरसेवकों के कान खडे हो गए.अपने नेताओं के विरोध में सुर निकालने लगे.भाजपा के कुछ नगरसेवकों का कहना है कि जब तक एकनाथ पवार सत्तरुढ नेता की कुर्सी पर बने रहेंगे भाजपा की बदनामी व छवि खराब होती रहेगी. राष्ट्रवादी के कुछ नगरसेवक विरोधी नेता दत्ता साने की भूमिका पर सवाल खडा कर रहे हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस के शहर अध्यक्ष संजोग वाघेरे का इस प्रकरण में अभी तक बयान न आना तेरी भी चुप मेरी भी चुप वाली बात है. उनकी चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है. दामन में दाग न लगे इसलिए दत्ता साने ने सोमवार को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कह रहे है. यह मामला कोर्ट में विचाराधीन था मगर टेंडर पास होने के कुछ दिन पहले केस वापस लिया गया.जब कोर्ट में जाना था तो केस वापस लेने की जरुरत क्या थी? यह भी सवाल उठ रहा है.
उस समय टेंडर का विरोध करने वाले भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप के बयान का भी सबको इंतजार है. दत्ता साने कोर्ट में जाते है या नहीं यह भी सबको इंतजार रहेगा. खेल बडा था, पेचिदा था, सबको आसानी से समझ में नहीं आने वाला. बस इतना समझ लो कि पक्ष-विपक्ष की दिपावली गोड गोड जाने वाली है. रहा सवाल मोदीजी के स्लोगन का कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा.. तो पिंपरी चिंचवड मनपा में नहीं चलेगा.क्योंकि आज के भाजपाई कल के राष्ट्रवादी वाले थे. आदत आसानी से छुटने वाली नहीं. ये फेविकोल का भ्रष्ट्राचारी जोड है आसानी से छुटने वाला नहीं. किसी के अच्छे दिन आए हो या नही मगर पिंपरी चिंचवड मनपा में भाजपा के अच्छे दिन जरुर आ गये.

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