पुणे-सरकार व निजी क्षेत्र की भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल पर बनाई जाने वाली परियोजनाओं को बहुत कम सफलता मिली है, लेकिन सरकार का मानना है कि पुणे मेट्रो में उसे निश्चित ही कामयाबी मिलेगी, क्योंकि पिछली गलतियों से उन्होंने सबक लेते हुए बड़े पैमाने पर सुधार किया है।
हैदराबाद और दिल्ली के पीपीपी मॉडेल को सफल बताते हुए पुणे मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र विकास प्राधिकरण के कमिश्नर किरण गीते ने बताया कि, पीपीपी मॉडेल को सफल बनाने के लिए काफी गहराई में जाकर अध्ययन किया है। घाटकोपर से वर्सोवा के बीच चलने वाली मेट्रो में रिलायंस और सरकार के बीच पीपीपी मॉडेल में जो गलतियां हो चुकी हैं, उससे सबक लिया गया है।यही नहीं देश में जहां कहीं भी पीपीपी मॉडल सफल हुआ है उनका विस्तार से अध्ययन किया गया है, तब जाकर पुणे में तीसरे चरण के मेट्रो के लिए पीपीपी मॉडल तैयार किया। बुधवार को मंत्रिमंडल की उपसमिति ने पुणे मेट्रो के तीसरे चरण को हरी झंडी दे दी। इस पर करीब 8,313 करोड़ रुपये खर्च आएगा। उसमें 20-20 प्रतिशत राज्य व केंद्र सरकार तथा 60 फीसदी रकम टाटा और सिमेंस कंपनी खर्च करेगी।टाटा का मेट्रो बनाने का पहला अनुभव होगा जबकि सिमेंस जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने 40 से ज्यादा जगहों पर मेट्रो का निर्माण कर चुकी है। पीपीपी योजना के तहत मेट्रो शुरू करने से 35 साल तक संचालन करेगी। तीसरे चरण में हिंजवडी से शिवाजी नगर तक मेट्रो चलाई जाएगी जिसकी कुल दूरी करीब 23.3 किमी ह््ैं। इसमें कुल 23 मेट्रो स्टेशन होंगे। लगभग प्रति किलोमीटर में एक स्टेशन होगा। तीन साल में काम पूरा कर मेट्रो का चलाने का लक्ष्य रखा गया है।
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