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अब क्या करेंगे आझमभाई ?

पिंपरी- शहर के जनाधार वाले नेता आझमभाई पानसरे को प्रदेश भाजपा हाईकामन तीन बार अनदेखी की. शायद आझमभाई के जनाधार से अनभिज्ञ है. लोकसभा चुनाव सिर पर है. दो लोकसभा और तीन विधानसभा सीट पिंपरी चिंचवड शहर से होकर गुजरती है. अगर भाई ने भाजपा की ओर पीठ घुमा ली तो मानो भाजपा का विनाशकालीन विपरित बुद्धि की कहावत धरातल पर दिखाई देने लगेगा. कार्यकर्ताओं, भाई को चाहने वाले बुद्धिजीवी नागरिकों की नजर अब भाई के अगले कदम की ओर है कि अब भाई क्या निर्णय लेते है. चर्चा यह भी है कि लोकसभा चुनाव आते आते भाई घरवापसी कर सकते है. क्योंकि अगले तीन साल तक भाई को सम्मानित पद देने के लिए भाजपा के पास कुछ नहीं है. दो साल इंतजार के बाद भाजपा ने अपना दिया आश्‍वासन पूरा नहीं किया. स्थानीय भाजपा के विधायक, पदाधिकारियों को भाई की ताकत का एहसास है. उनको डर है कि कहीं भाई चुनाव के समय खेल बिगाड न दें. यही कारण रहा कि चार दिनों से शहर के एक नबर वाले सारे नेता मुंबई में डेरा डाले थे कि पांडुरंग फुंडकर के निधन से खाली विधानपरिषद की सीट भाई को मिल जाए. मगर हाईकमान ने मांग को खारिज करते हुए कहा कि वो सीट विदर्भ के नेता अरुण अडसर को दे दी गई है.शहर के नेता बैरंग चिट्ठी की तरह वापस लौट आए. आझमभाई राष्ट्रवादी कांग्रेस के लगातार दो बार शहर अध्यक्ष थे. मनपा में पूर्ण बहुमत से सत्ता दिलाए. महापौर रह चुके है. राष्ट्रवादी ने एक बार लोकसभा का टिकट दिया. राकांपा कोटे से ग्राहक कल्याण सल्लागार समिति अध्यक्ष बने. पालिका चुनाव के समय भाजपा ने भाई को सरकार में कोई सम्मानित पद देने का आश्‍वासन देकर राष्ट्रवादी से तोड लिया. भाई ने भी भाजपा को सत्ता दिलाया. मगर भाजपा अब अपने दिए आश्‍वासन से यू टर्न ले रही है. भाई की नाराजगी का फटका भाजपा को आने वाले दिनों में लग सकता है.

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