पुणे-सोलापुर में इस साल औसत से काफी कम बारिश हुई, जिसके चलते जिले के किसानों के साथ अधिकारी भी परेशान हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सोलापुर के डीएम ने कृत्रिम बारिश कराने का फैसला किया। मगर इसके लिए जो तरीका अपनाया उस पर विवाद हो गया और अंत में उन्हें अपना फैसला वापस लेना पड़ा।दरअसल डीएम राजेंद्र भोसले ने जिले की सभी 11 तहसीलों को आदेश दिया था कि वह अपने-अपने क्षेत्रों में करीब 1026 जगहों पर पेड़ की टहनियों और नमक के साथ रबड़ के टायरों को जलाएं। उनके इस आदेश पर विवाद शुरू हो गया, पर्यावरणविदों ने उन्हें इसके नुकसान के बारे में बताया। आखिरकार उन्हें अपना फैसला वापस लेना पड़ा। बता दें कि टायरों को जलाने पर सायनाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीलें गैसें निकलती हैं और टायर जलाने को नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने भी बैन कर रखा है। कई पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने डीएम की बारिश बनाने की इस ‘रेसिपी’ को अवैज्ञानिक और जहरीला बताया।
डीएम भोसले के आदेश का कई जगह अनुपालन भी होने लगा था। गांववाले भी आश्वस्त थे कि अगले 24-48 घंटों में बारिश होगी। मगर दबाव के बीच उन्हें यह आदेश वापस लेना पड़ा। भोसले ने बताया कि उन्हें बारिश की इस ‘रेसिपी’ के बारे में राजा मराठे से पता चला था, जो आईआईटी बॉम्बे के अलुम्नाई हैं।
भोसले ने कहा, ‘मुझे बताया गया था कि नमक, पेड़ की टहनियों और टायरों को एक साथ जलाने से आर्टिफिशल बारिश में मदद मिलेगी। यह एक आईआईटी साइंटिस्ट की सलाह के बाद किया गया। उन्होंने मुझे बताया था कि इसे पहले भी प्रयोग किया जा चुका है। हमने सिर्फ प्रयोग के तौर पर इसकी टेस्टिंग शुरू की थी, मगर जैसे ही कुछ पर्यावरणविदों ने इसके नुकसान के बारे में बताया हमने इसे रोक दिया।’
राजा मराठे ने अपने प्रयोग को बताया सही
हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में राजा मराठे ने अपने इस प्रयोग को सही बताया। वह इसे वरुणयंत्र कहते हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछले 9 साल के प्रयोग के दौरान वरुणयंत्र बारिश पैदा करने में सफल रहा है। प्रयोग में नमक उच्च तापमान पर वाष्पित होकर वातावरण में घुलता है और बारिश होती है। उन्होंने कहा, ‘इस प्रयोग के लिए सिर्फ दो बड़े टायरों, 50 किलो नमक की जरूरत होती है जो 4-5 वर्ग किमी एरिया में 3-5 एमएम बारिश पैदा कर सकता है। यह करीब 500 पानी के टैंकरों के बराबर बारिश होती है, जिसकी कीमत 5 लाख रुपये तक हो सकती है। इतना सब महज 500 रुपये में किया जा सकता है।’
क्लाउड सीडिंग एक्सपर्ट ने इस प्रयोग को बताया अवैज्ञानिक
हालांकि मराठे के इन विचारों को आईआईटीएम के पूर्व वैज्ञानिक और क्लाउड सीडिंग एक्सपेरिमेंट के प्रॉजेक्ट हेड जे.वी. कुलकर्णी ने खारिज किया। कुलकर्णी ने कहा, ‘यह प्रक्रिया पूरी तरह अवैज्ञानिक है। टायर जलाने से सायनाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें पैदा होती हैं। इस प्रयोग के मुताबिक सोडियम वाष्पित होकर क्लाइड बेस में घुलता है और बारिश होती है, मगर क्या गारंटी है कि सोडियम क्लाउड बेस तक पहुंचेगा और बीच में हवा की वजह से उड़ेगा नहीं?’
डीएम भोसले के आदेश का कई जगह अनुपालन भी होने लगा था। गांववाले भी आश्वस्त थे कि अगले 24-48 घंटों में बारिश होगी। मगर दबाव के बीच उन्हें यह आदेश वापस लेना पड़ा। भोसले ने बताया कि उन्हें बारिश की इस ‘रेसिपी’ के बारे में राजा मराठे से पता चला था, जो आईआईटी बॉम्बे के अलुम्नाई हैं।
भोसले ने कहा, ‘मुझे बताया गया था कि नमक, पेड़ की टहनियों और टायरों को एक साथ जलाने से आर्टिफिशल बारिश में मदद मिलेगी। यह एक आईआईटी साइंटिस्ट की सलाह के बाद किया गया। उन्होंने मुझे बताया था कि इसे पहले भी प्रयोग किया जा चुका है। हमने सिर्फ प्रयोग के तौर पर इसकी टेस्टिंग शुरू की थी, मगर जैसे ही कुछ पर्यावरणविदों ने इसके नुकसान के बारे में बताया हमने इसे रोक दिया।’
राजा मराठे ने अपने प्रयोग को बताया सही
हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में राजा मराठे ने अपने इस प्रयोग को सही बताया। वह इसे वरुणयंत्र कहते हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछले 9 साल के प्रयोग के दौरान वरुणयंत्र बारिश पैदा करने में सफल रहा है। प्रयोग में नमक उच्च तापमान पर वाष्पित होकर वातावरण में घुलता है और बारिश होती है। उन्होंने कहा, ‘इस प्रयोग के लिए सिर्फ दो बड़े टायरों, 50 किलो नमक की जरूरत होती है जो 4-5 वर्ग किमी एरिया में 3-5 एमएम बारिश पैदा कर सकता है। यह करीब 500 पानी के टैंकरों के बराबर बारिश होती है, जिसकी कीमत 5 लाख रुपये तक हो सकती है। इतना सब महज 500 रुपये में किया जा सकता है।’
क्लाउड सीडिंग एक्सपर्ट ने इस प्रयोग को बताया अवैज्ञानिक
हालांकि मराठे के इन विचारों को आईआईटीएम के पूर्व वैज्ञानिक और क्लाउड सीडिंग एक्सपेरिमेंट के प्रॉजेक्ट हेड जे.वी. कुलकर्णी ने खारिज किया। कुलकर्णी ने कहा, ‘यह प्रक्रिया पूरी तरह अवैज्ञानिक है। टायर जलाने से सायनाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें पैदा होती हैं। इस प्रयोग के मुताबिक सोडियम वाष्पित होकर क्लाइड बेस में घुलता है और बारिश होती है, मगर क्या गारंटी है कि सोडियम क्लाउड बेस तक पहुंचेगा और बीच में हवा की वजह से उड़ेगा नहीं?’