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आयुक्त की धुंआधार बैटिंग से पक्ष-विपक्ष धाराशायी

पिंपरी- पिंपरी चिंचवड मनपा के कै.मधुकर पवले सभागृह की पीच पर कल आयुक्त शेखर सिंह ने धूंआधार बैटिंग करके पत्रकारों को चारों खाने चित्त कर दिए। वहीं यह संदेश भी दिया कि …ना पक्ष-ना विपक्ष…आयुक्त जो बोले सो निहाल…। हलांकि कुछ पत्रकारों ने अच्छी बॉलिंग और फिल्डिंग करते नजर आए,लेकिन आयुक्त की धुंआधार बैटिंग के आगे ज्यादा समय टिक न सके और एक एक करके धाराशायी हो गए। भाई आईएएस कोई ‘ऐरा गैरा नत्थू खैरा’ थोड़े ही बनता है,उसके लिए कड़ी मेहनत करके अपने आपको तपाकर परीक्षा पास करना पड़ता है। हलांकि आईएएस और पत्रकार दोनों समाज के बुद्धिजीवी श्रेणी में आते हैं। एक का काम ‘लिखना’ तो दूसरे का काम ‘करना’ होता है। क्या है मामला? आओ समझाने की कोशिश करते हैं…

राकांपा-भाजपा के आरोप
पिंपरी चिंचवड स्मार्ट सिटी अंतर्गत ऑप्टिकल फायबर नेटवर्क परियोजना अमल में लायी जा रही है। लेकिन योजना शुरु होने से पहले विवादों का चादर ओढ़ ली। विपक्षीय पार्टी राष्ट्रवादी और सत्तारुढ भाजपा के स्थानीय नेताओं ने जिस कंपनी को यह ठेका दिया गया उसका जमकर विरोध किया,संगीन आरोप लगाए कि जिस कंपनी को ठेका दिया जा रहा है उसके एक संचालक पर गुजरात में 420 का अपराध दर्ज है। इनका संबंध दुबई से है। शहर के 30 लाख नागरिकों का पर्सनल मोबाईलट डेटा इनके पास होगा,जो कभी भी दुरुपयोग किया जा सकता है। दोनों प्रमुख पार्टियों ने आयुक्त शेख सिंह को इस संदर्भ में अलग अलग पत्र सौंपकर टेंडर रद्द करने व दोबारा टेंडर प्रक्रिया की मांग की थी।

केबल नेटवर्क निविदा में कुछ गलत नहीं,शहर की सुरक्षा को खतरा नहीं-शेखर सिंह
कल गुरुवार को आयुक्त शेखर सिंह ने इस बारे में एक पत्रकार परिषद बुलाई और खुलासा किया कि सुयोग टेलिमॅटिक्स व फायबर स्टोरी कम्युनिकेशन नामक कंपनी को यह टेंडर देने से पहले उनके बारे में गहन जांच पडताल किया जा चुका है। दोनों कंपनियां सही पायी गई। इनके किसी भी संचालकों पर अपराध दर्ज नहीं है। केबल नेटवर्क टेंडर प्रक्रिया में कोई अनुचित अथवा गड़बड़ी जैसी बातें नहीं है। शहर की सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा नहीं। बैंक गारंटी,अफिडेविट लिया गया है। टेंडर प्रक्रिय पारदर्शी और स्पर्धात्मक तरीके से हुई है। कंपनी को ‘वर्क्स ऑर्डर’ रिलिज किया जा चुका है। यहां ना पक्ष की बात है और ना विपक्ष की बात..एक आयुक्त के नाते मुझे सबकुछ ठीक लगा,मैंने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए संबंधित कंपनी को ठेका दिया है। जिस संचालक की बात हो रही है वह कंपनी से पहले ही त्यागपत्र दे चुका है,उसके विरुद्ध गुजरात में अपराध बाद में दर्ज हुआ। अगर दुबई अथवा आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों से कनेक्शन होत तो गुजरात पुलिस केवल 420 की धारा क्यों लगाई,और धाराओं में अपराध पंजिकृत क्यों नहीं किया? रहा सवाल उसके शेयर होल्डर की तो कंपनी में कई शेयर होल्डर होते हैं,इनको कंपनी के किसी कामकाज में निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता।

स्मार्ट सिटी कंपनी को 10 वर्षों में मिलेगा 324 करोड़ का उत्पन्न
ठेका प्राप्त कंपनी से मनपा को वार्षिक 108% मतलब 32.4 करोड़ रुपये का उत्पन्न मिलेगा। साथ ही 21 करोड रुपये अतिरिक्त उत्पन्न देने के लिए सहमति बनी है। इस हिसाब से स्मार्ट सिटी कंपनी को 10 वर्षो में 324 करोड़ रुपये का उत्पन्न मिलेगा। आगामी आर्थिक वर्ष से सरकार से कंपनी को निधी उपलब्ध नहीं होगी। मिलने वाले इस राजस्व से पालिका के उपर से आर्थिक भार कम करने में मदद मिलेगी। ऐसे प्रकल्प देश में पहली बार स्मार्ट सिटी ने अमल में लाया है।

…अब क्या करेगा पक्ष-विपक्ष?
आयुक्त के इस धुंआधार बैटिंग को देखकर पक्ष-विपक्ष हैरान और परेशान नजर आ रहा है। भाई दोनों खेमे में इतनी खामोशी क्यों है? हलांकि आयुक्त के इस अधिकार को कोर्ट में चुनौति देने का विकल्प उनके सामने खुला है। मनपा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पक्ष-विपक्ष एकसाथ किसी एक मुद्दे पर प्रशासक के खिलाफ खड़े है। वर्ना हमेशा मैच फिक्सिंग अथवा विरोध प्रदर्शन देखा गया है। अब देखना होगा कि राकांपा-भाजपा दोनों आयुक्त के इस निर्णय के बाद अगला क्या कदम उठाते है? या फिर मैच फिक्सिंग करके तू भी चुप…मैं भी चूप की भूमिका में नजर आते है?

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