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भारतीय रेलवे में ट्रांसफर का बडा गोलमाल

रेलवे अधिकारी ट्रांसफर में बड़ा खेला: रेल प्रशासन है जिम्मेदार

पुणे- हर सरकारी विभाग में ट्रांसफर को लेकर एक नियम बने होते है लेकिन रेलवे विभाग में जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत चरितार्थ हो रही है। ट्रांसफर में बडा खेला चल रहा है। ट्रांसफर को लेकर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों की मनमानी हर डिवीजन में देखने को मिल रही है। मुंबई,पुणे,भुसावल,में खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाकर आपसी सैटिंग करके मनचाही जगह पर सालों साल काम करते है। मनचाही जगह पर काम करने की होड सी लगी है।

वीर सिंह मीणा को गुड्स विभाग से इतना प्रेम क्यों?
वीर सिंह मीणा ट्रेनिंग सेंटर भुसावल मंडल में सीआई (इंस्पेक्टर) थे, प्रमोशन होने के बाद मुंबई सीएसटी में टीसी विभाग के एसीएम बनाये गये। सीएसटी से इनका कार्यकाल पूरा होने के बाद नियम के अनुसार इनका ट्रांसफर दूसरे मंडल में होना चाहिए था। लेकिन रेल अधिकारियों की मनमानी के चलते मीणा को गुड्स का पुन: एसीएम बना दिया गया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मीणा के पास भले ही टीसी का प्रभार था लेकिन यह पहले भी गुड्स की कमान संभाल रहे थे अब जब मीणा को गुड्स की जवाबदारी मिली तब भी यह कई और विभाग पर अपना दबदबा बनाये हुए है। सूत्रों की माने तो रेलवे स्टेशन में चलने वाले खान पान के स्टाल के जो टेंडर निकलते है उसका भी जिम्मा मीणा को ही दिया गया है। जबकि रेलवे के कई कर्मचारियों ने वीर सिंह मीणा द्वारा किये जा रहे भेदभाव,प्रताडित व अनियमिताओं की शिकायतें की है। लेकिन रेल प्रशासन द्वारा अनुसुना कर दिया गया।

एसीएम सुभाष पुणे रेल मंडल में कब तक डटे रहेंगे?
यही हाल पुणे मंडल का है पुणे मंडल में कार्यारत एसीएम,एस वी एन सुभाष ने पुणे मंडल में दिनांक 08/08/2018 को एसीएम का पदभार संभाला तब से इनके कार्यप्रणाली के बारे में लगातार कई शिकायतें की गई,लेकिन इस पर रेल प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हुई। चार वर्ष बाद जब इनका एक विभाग से कार्यकाल पूरा हुआ तब रेल अधिकारियों द्वारा विभाग बदलकर पुणे मेंं ही पुन:डटे रहने का अवसर दे दिया। आए दिन सुनने को मिलता है की एसीएम सुभाष पुणे रेलवे स्टेशन के खानपान स्टाल धारकों को बिना कारण स्टॉल बंद करने की धमकी देते हैं तथा वरिष्ठ वाणिज्य मंडल प्रबंधक(सीनियर डीसीएम) को गुमराह करते है वही अपने खास लोगों को आपातकालीन कोटे से टिकट कनफर्म करने का भी काम करते है। इस तरह के कई आरोप इन पर पिछले तीन चार वर्षो से लगातार लग रहे है।

7 साल से पुणे में कार्यरत पीआरओ झंवर का ट्रांसफर आखिर कब?
वही पुणे रेल मंडल के जनसंपर्क अधिकारी मनोज झंवर सन् 2015 में पुणे मंडल में बतौर जनसंपर्क अधिकारी पद का कार्यभार संभाले थे। मनोज झंवर द्वारा पत्रकारों से भेदभाव करने की शिकायतें कई बार रेलवे के अति वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई पत्रकारों द्वारा यह भी बताया गया कि रेलवे में घटित घटना तथा प्रशंसनीय कार्यो की जानकारी मनोज झंवर पीआरओ नहीं देते है तथा पत्रकारों से इनका बर्ताव बहुत ही अशोभनीय रहता है। मनोज झंवर लगभग 7 वर्ष से पुणे में अंगद की तरह पैर जमाकर एक ही जगह बैठे है।

पुणे डीआरएम कार्यालय में भी खेला
वही पुणे मंडल के डीआरएम कार्यालय में कार्यरत निज सचिव रैना और वहीं तैनात कर्मचारी नागेन्द्र भी मनमानी करते है। अगर सूत्रों की माने तो यह भी डीआरएम को गुमराह कर अपनी रोटियां सेंकने में मस्त है। डीआरएम के नाम से रोजाना आपातकालीन कोटे से कई रेलवे आरक्षित टिकट कनफर्म करवाते हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि अपने चित परिचित नाते रिस्तेदारों के भारत के कई रेल डिवीजन में यह टिकट कनफर्म करवाते है। जिसकी जानकारी डीआरएम को नहीं होती है। अगर इनके मोबाइल क्रमांक के ह्वाटअ‍ॅप मैशेज अथवा डीआरम आफिस के ई मेल की जांच हो तो कई मामले उजागर होने की आशंका कुछ समाजिक संगठनों ने जताया है।

रेलवे में कुछ अधिकारियों का ट्रांसफर समयसीमा के अंदर हो जाता है
कुछ समाजिक संगठनों का यह भी कहना है की रेलवे द्वारा समय पर कुछ अधिकारियों का ट्रांसफर भी होता है। चाहे जीएम, डीआरएम,सीनियर डीसीएम,तथा डीसीएम,स्टेशन मास्टर आदि के ट्रांसफर समय रहते होते है,और यह सभी अधिकारी तत्काल प्रभाव से अपना चार्ज देकर एक मंडल से दूसरे मंडल दूसरे झोन में चले जाते है फिर सवाल यह उठता है कि मुंबई में पदस्थ एसीएम वीर सिंह मीणा पुणे में पदस्थ एसीएम सुभास,पीआरओ मनोज झंवर के लिये क्या यह नियम लागू नही होते हैं? यह सभी जांच का विषय है की कही इन सभी के ट्रांसफर में कोई गोलमाल तो नहीं?

रेल प्रशासन कुंभकर्णीय नींद से कब जागेगा?
दिल्ली रेल बोर्ड के एक सेवा निवृत्त अधिकारी ने नाम नही छापने की शर्त पर यह बताया की इन सभी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये रेलवे के कुछ प्रशासनिक भ्रष्ट अधिकारी ़भी इनका सहयोग करते है। उन्होंने यह भी कहा की अगर नियम के अनुसार समय पर इन सभी के ट्रांसफर रेल प्रशासन द्वारा बिना दबाव के किये जाएं तो रेलवे का भ्रष्टाचार जड़ से खत्म हो सकता है तथा रेल प्रशासन की छवि जो धूमिल हो रही है उससे भी रेलवे प्रशासन को निजात मिल सकती है। अब देखना यह होगा की रेल प्रशासन अपनी कुंभकर्णी नींद से कब जागता है?

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