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कामगार नेता यशवंत भोसले 12 दिनों से भूखहडताल पर,स्वास्थ्य में गिरावट

पुणे- केंद्र सरकार के नए श्रम कानून के विरोध में और कोरोना काल में कंपनियों ने जिस तरह तानाशाही ढंग से कामगारों को काम से निकाला,उनको वापस काम पर लेने की मांग को लेकर राष्ट्रीय श्रमिक आघाडी के अध्यक्ष और (एनएफआईटीयू) नेश्नल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष यशवंत भोसले 10 अगस्त से कामगार आयुक्त कार्यालय शिवाजीनगर में बेमुदत भूख हडताल पर बैठे है। उनके साथ सैकडों पीडित,शोषित महिला,पुरुष कामगार भी बारिश,ठंडी में अनशन पर बैठे हैं। भूखहडताल का आज 12 वाँ दिन है। लेकिन जिला प्रशासन अथवा महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक कोई सुध नहीं ली। प्रतिदिन यशवंत भोसले के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है। डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य संबंधित जांच कर रही है। उनके अनुसार 12 दिनों में 10 किलो वजन घटा है।

आदेशों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर क्या कार्रवाई होगी?

पुणे जिलाधिकारी,पुलिस अधिकारियों समेत महाराष्ट्र के उद्योगमंत्री के संज्ञान में इस भूखहडताल की बात लायी गई है। लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले सके। पुणे जिला प्रशासन,महाराष्ट्र सरकार,पुलिस विभाग की आखिर क्या मजबुरी,लाचारी है कि संबंधित कंपनी मालिकों के विरुद्ध अभी तक कड़ी कार्रवाई नहीं की? कोरोना काल में कंपनी मालिकों ने हिटलरशाही तरीके से कामगारों की छंटनी की। जबकि केंद्र सरकार,राज्य सरकार और पुणे जिला प्रशासन का संयुक्त आदेश था कि किसी भी कामगार को काम से नहीं हटाया जाएगा और वेतन में भी कोई कटौति नहीं की जाएगी। लेकिन सणसवाडी,शिरूर,जिला पुणे,मे.राठी ट्रांसपॉवर प्रा.लिमिटेड आलंदी मरकल रोड,धनौर, तहसीलखेड़ जिला पुणे के 41 स्थायी श्रमिकों को नौकरी से हटाया गया, मे.प्लास्टिक ओम्नियम एटो एक्सटीरियर (ई) प्राइवेट लिमिटेड,प्लॉट नंबर सी04,एमआईडीसी,चाकन,फेज 2,भम्बोली,तहसील खेड़,जिला पुणे ने 60 स्थायी कर्मचारियों हटाया और एम तारिणी स्टील कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गेट नंबर 399,चर्होली खुर्द,उप जिला खेड़,जिला पुणे से 40 स्थायी कर्मचारियों को हटाया गया गया। पुणे जिला प्रशासन,पुलिस विभाग,महाराष्ट्र सरकार क्या इन कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का साहस दिखाएंगे?

 

हटाए गए कामगारों की हालात बेहद दयनीय

हटाए कामगारों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय बन चुकी है। उनको परिवार पालना मुश्किल हो गया है। एक-एक दाने के लिए मोहताज हैं। बच्चों की पढ़ाई लिखाई सब कुछ बंद है। कामगारों की दयनीय स्थिति और मांगों को लेकर कई बार यशवंत भोसले ने कामगार आयुक्त,पुणे से मुलाकात की। आयुक्त ने कामगारों को वापस काम पर रखने का आदेश कंपनी मालिकों को दिए,अपराध भी दर्ज किए? मगर कंपनी मालिकों पर कोई असर नहीं पड़ा।

 

राष्ट्रीय श्रमिक अघाडी की प्रमुख मांगें:-

1) केंद्र सरकार ने श्रम अधिनियम 2022 के तहत किसी भी कंपनी में अब 100 के बजाय 300 कामगार कार्यरत है तो कंपनी मालिकों को कंपनी बंद करने और कामगारों को हटाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस नए नियम से महाराष्ट्र में 90% कामगारों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। महाराष्ट्र में यह कामगार विरोधी श्रम कानून लागू न हो।

 

2) कामगारों व कर्मचारियों से डायरेक्ट ठेकेदारी प्रणाली से 3 वर्ष या 5 वर्ष का अनुबंध कंपनी मालिक कर रहे है। यदि कंपनी प्रबंधन ऐसा सोचता है तो कंपनी के मालिकों को समय सीमा बढ़ाने का अधिकार है। युनियन में शामिल होने के लिए प्रतिष्ठानों की मंजूरी आवश्यक है। यह नियम बदलना चाहिए।

 

3) महाराष्ट्र के उद्योगों में ठेकेदारी व नीम्मस छएएचड के माध्यम से करोड़ों श्रमिकों की भर्ती के कारण राज्य के युवाओं का जीवन बर्बाद हो रहा है। क्योंकि कंपनियां कर्मचारियों को फिक्स कॉन्ट्रैक्ट दे रही हैं। इसके कारण राज्य में ठेकेदारी रोजगार अनुबंध और नीम्स प्रणाली को बंद किया जाना चाहिए। साथ ही यह कानून भी लागू किया जाए कि 6 महीने की ट्रेनिंग,6 महीने का प्रोबेशन पूरा करने वाले युवाओं को उस उद्योग में सेवा में रखा जाए।

 

4) 240 दिन पूरे होने पर और लगातार काम करने के बाद उन श्रमिकों को संबंधित प्रतिष्ठान और कारखाने में स्थायी रूप से नियोजित किया जाता है। लेकिन नए श्रम कानून के अनुसार स्थायी श्रम प्रणाली बंद हो जाएगी और समाज में बेरोजगारी का भारी बोझ बढ़ेगा। इसलिए इन कानूनों को महाराष्ट्र में लागू नहीं किया जाना चाहिए।

 

5) कोरोना (कोवि-19) महामारी के दौरान उपर्युक्त कारखानों और प्रतिष्ठानों के श्रमिकों को अवैध रूप से निकाल दिया गया था जबकि केंद्र और राज्य सरकारों ने आदेश जारी किया था कि किसी भी श्रमिक को नौकरी से नहीं निकाला जाना चाहिए और उनके वेतन में कटौती नहीं की जानी चाहिए। मा. उच्च न्यायालय, मुंबई और औरंगाबाद ने इस संबंध में आदेश जारी किया था। लेकिन कंपनी मालिकों ने आदेश का पालन नहीं किया।

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