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अजित गव्हाणे की ताजपोशी के पीछे चाणक्य कौन?

पिंपरी- पिंपरी चिंचवड समेत पूरे राज्य में मोदी लहर के चलते राष्ट्रवादी कांग्रेस के बुरे दिन का दौर 2014 से शुरु हुआ। कई दिग्गज नेता पार्टी का दामन छोडकर भाजपा का दामन थामा। लेकिन उस बुरे दौर में भोसरी के पूर्व विधायक विलासशेठ लांडे ने राष्ट्रवादी के साथ खड़े रहे। एक सच्चे वफादार सैनिक की तरह डटे रहे। वर्तमान में राष्ट्रवादी के अच्छे दिन का दौर शुरु है। महाराष्ट्र में आघाडी सरकार है। विलास लांडे के पास पहाड़ जैसा रानीतिक अनुभव है लेकिन वर्तमान में पार्टी का कोई पद नहीं। संजोग वाघेरे के इस्तीफे से रिक्त शहर अध्यक्ष पद के लिए इच्छुक थे,युद्धस्तर पर प्रयास किए मगर पार्टी ने उन पर अविश्वास दिखाया और उन्हींं के चेला,राजनीतिक वारिसदार अजित गव्हाणे की ताजपोशी की।

 

विलास लांडे का चाणक्य ने खेल बिगाड़ा

राकांपा शहर अध्यक्ष पद के लिए विलास लांडे,पूर्व स्थायी समिति सभापति प्रशांत शितोले,अजित गव्हाणे रेस में थे। तीनों ने अपने अपने स्टाइल में फिल्डिंग लगायी। कई बार अजित पवार के दरबार में परिक्रमा लगाए। शहर राकांपा में गुटबाजी चरमसीमा पर है। राजनीतिक गलियारों से जो बातें छनकर आ रही है कि दो गुटों का विलास लांडे के नाम पर विरोध था। पहले राउंड में ही विलास लांडे रेस से बाहर हो गए। बचे दो इच्छुक प्रशांत शितोले और अजित गव्हाणे में से एक को चुनना था। दो गुट अजित गव्हाणे के साथ खडा दिखाई दिया। प्रशांत शितोले की दावेदारी कमजोर पड गई। राजनीति के एक चाणक्य…बॉस… ने चाणक्य नीति चलाई और अजित गव्हाणे को ताजपोशी करवायी। आपको यह भी बताते चलें कि मनपा में राष्ट्रवादी की 15 साल सत्ता के दौर में इस चाणक्य का डंका बजता था। अजित पवार शायद ही कभी इस चाणक्य के प्रस्ताव को ठूकराया हो। अजित गव्हाणे की ताजपोशी कराके इस चाणक्य ने अगला पिछला हिसाब किताब चुकाता किया और एक तीर से दो शिकार किया।

 

दिग्गजों का जमावड़ा,टिकट चहेतों का मेला

कल शहर के एक होटल में अजित गव्हाणे की ताजपोशी के वक्त हम सब एक हैं..का नजारा देखने को मिला। पार्टी फोरम के कार्यक्रमों में पिछले 5 साल नजर न आने वाले पुराने दिग्गज कल …साथी हाथ बढ़ाना गीत गाते नजर आए। आझमभाई पानसरे,हनुमंत गावडे,भाउसाहेब भोईर,महम्मद भाई पानसरे,जगदीश शेटटी, के अलावा मंगला कदम,संजोग वाघेरे,नाना काटे,प्रशांत शितोले,मच्छिंद्र तापकीर,राजू मिसाल,फजल भाई शेख,डब्बू आसवानी जैसे दिग्गज नेताओं ने एकजुट का संदेश दिया। वहीं चुनावी मौसम में टिकट के इच्छुक दावेदारों का कुंभ का मेला भी दिखा। सात साल संजोग वाघेरे ने शहर अध्यक्ष की कमान संभाली। कई आंदोलन,मोर्चा निकाला,लेकिन इस कुंभ के मेले में से 70 फीसदी लोग कभी नजर नहीं आए। राज्य में सत्ता होने और अच्छे दिन आने से राकांपा की घडी हर कोई हाथ में बांधना चाहता है।

 

विलास लांडे की एक्सपर्ट टीम अब क्या करेगी?

भोसरी के पूर्व विधायक विलास लांडे के पास अनुभव का पहाड़ है। पिछले कई महिनों से राकांपा को वापस सत्ता में लाने के लिए शहर के कुछ एक्सपर्ट की टीम अपाइंटमेंट कर रखी थी। यह एक्सपर्ट टीम राष्ट्रवादी की सत्ता मनपा में कैसे लायी जाए इस बारे में प्रशांत किशोर की तरह नई नई तरकीब पर काम कर रही थी। एक्सपर्ट टीम के दम पर विलास लांडे की जोरदार तैयारी थी। राकांपा की कमान अपने हाथ में आएगी,ज्यादा नगरसेवक चुनकर लाएंगे,राकांपा को सत्ता दिलाएंगे,लेकिन अजित गव्हाणे की ताजपोशी ने विलास लांडे और उनकी अपाइंटमेंट टीम के मंसूबे पर पानी फेर दिया। अब अपाइंटमेंट एक्सपर्ट टीम क्या करेगी? क्योंकि विलास लांडे के पास इनको काम देने के लिए कुछ रहा नहीं। एक्सपर्ट टीम को रोजी रोटी के लिए दुसरे घर का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। राजनीति के जानकारों का कहना है कि विलास लांडे के राजनीतिक वर्चस्व को निश्चित धक्का लगा है। राजनीति में बैकफुट पर आ गए। विधानसभा चुनाव के समय विलास लांडे पार्टी का टिकट न लेकर निर्दल उम्मीदवार के रुप में चुनाव लडा था तब से पार्टी के स्थानीय और राष्ट्रीय नेता इनसे खफा है। अध्यक्ष पद को लेकर अंदरखाने चाहे जो भी खिचडी पक्की हो लेकिन विलास लांडे जिसने पार्टी के बुरे दिनों में चट्टान की तरह खडे रहे उनका राजनैतिक अनुभव का फायदा उठाने से राष्ट्रवादी चूक गई। अजित गव्हाणे की ताजपोशी से राकांपा को कितना फायदा और भाजपा को कितना नुकसान होगा? यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।

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