हजारों,सैकड़ों पुरस्कार,लेकिन मिट्टी के साथ करीबी रिश्ता,ऐसा रहा सिंधुताई का कठिन सफर
पुणे- वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सकपाल का कल देर रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका पुणे के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। उन्हें एक महीने पहले स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सिंधुताई सपकाल की हर्निया की सर्जरी भी हुई। अनाथ बच्चों की माता पद्मश्री सिंधुताई के निधन से सैकडों अनाथ बच्चों का अब सहारा कौन बनेगा?यह सबसे बडा सवाल खडा हो गया है। उनके जाने से सामाजिक क्षेत्र पर भारी असर पड़ा है। उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष
सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1947 को वर्धा,महाराष्ट्र में हुआ था। उनका जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा। जीवन के हर पड़ाव पर उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ा। परिवार को बेटी नहीं चाहिए थी,लेकिन परिवार ने सिंधुताई का नाम रखा क्योंकि वह एक लड़की थी। नवरगांव उनका जन्मस्थान था। खराब परिस्थितियों के कारण उन्हें अपने पिता के घर काम करना पड़ा। लेकिन ऐसे में सिंधुताई ने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। इनकी शादी 9 साल की उम्र में हुई थी। उनके पति श्रीहरि सपकाल उनसे 26 साल बड़े थे। अठारह वर्ष की आयु में उन्होंने समाजशास्त्र में छलांग लगा दी। वे उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती थी जो पीडित,शोषित थी। इन महिलाओं को कड़ी मेहनत करनी पड़ी लेकिन बदले में उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिली। सिंधुताई ने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। यहीं से उनके सामाजिक कार्यों की शुरुआत हुई।
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की स्थापना
अपने ससुर का घर छोड़ने के बाद उन्होंने अनाथों की देखभाल और उनके जीवन को दिशा देने के लिए ममता बाल सदन संस्था की स्थापना की। संस्थान की शुरुआत 1994 में पुणे के पास पुरंदर तहसील के कुंभरवलन गांव में हुई थी। उन्होंने अपनी बेटी ममता को दगडूशेठ हलवाई संस्था के माध्यम से शिक्षा के लिए सेवासदन में भर्ती कराया और अन्य अनाथों को सहारा देने लगी। इस संस्था के माध्यम से अनाथों की देखभाल की जाती है। सिंधुताई सपकाल ने बाल निकेतन हडपसर,पुणे सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल,चिखलदरा,अभिमान बाल भवन,वर्धा,गोपिका गैराक्षन केंद्र,वर्धा,ममता बाल सदन,सास्वद और सप्तसिंधु महिला आधार बाल संगठन और शिक्षण संस्था की भी स्थापना की।
फंडिंग के लिए दुनिया भर में यात्रा करना
सिंधुताई ने अपने संगठन के अभियान और काम के लिए धन जुटाने के लिए देश भर की यात्रा की। देश में भ्रमण के दौरान उन्होंने अपनी वाणी और काव्य से समाज को प्रभावित किया। विदेश से अपने काम के लिए अनुदान लेने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने ग्लोबल फाउंडेशन की स्थापना की।