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महेश दादा की बैलगाडी दौड़ से शुरु होगी शिरुर की दौड़

पिंपरी- भोसरी से भाजपा के विधायक महेश दादा लांडगे ने बैलगाडी दौड़ की लडाई सुप्रिम कोर्ट में जीतने के बाद अब 2024 में शिरुर की दौड़ जीतने के लिए व्यूहरचना की तैयारी में जुट गए है। बैलगाडी दौड़ के रास्ते शिरुर लोकसभा ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी राजनीतिक जमींन को मजबुत करेंगे। भोसरी विधानसभा का क्षेत्र शिरुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र में महेशदादा का एकतरफा वर्चस्व है। शिरुर में शिवाजी आढावराव को पटकनी देकर राकांपा के डॉ.अमोल कोल्हे विजयी घोषित हुए। अब महेशदादा लांडगे सांसद कोल्हे को पटकनी देकर भाजपा की झोली में यह सीट डालने की कमर कस ली है। बैलगाडी दौड़ पर प्रतिबंध लगा था। महेशदादा ने सुप्रिम कोर्ट तक लडाई लडकर प्रतिबंध को हटवाने में सफलता हासिल की। ग्रामीण आंचल के किसानों में यह संदेश जा चुका है। अब पीछे से कोई भी श्रेय लेना चाहे तो फायदा नहीं होगा। तीन दिन तक दिल्ली में रहकर सुप्रिम लडाई जीतने के बाद महेश दादा कल शाम पुणे हवाई अड्डे से जैसे ही बाहर निकले समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठाकर जुलूस निकाला,मोरवाडी के भाजपा पार्टी कार्यालय में पीला गुलाल उडाकर आनंदोत्सव मनाया।

महाराष्ट्र में पिछले कई सालों से बैलों की दौड़ पर लगे प्रतिबंध को हटाने की न्यायालयीन लड़ाई आखिरकार कामयाब हो गई है। बैलगाड़ी दौड़ को सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त मंजूरी दे दी है। यह जीत महाराष्ट्र के किसान की है। भोसरी के भाजपा विधायक महेश लांडगे ने इस लड़ाई को सुप्रिम कोर्ट तक लड़ा आखिरकार उनके प्रयासों को सफलता मिली। जिसका पूरा श्रेय महेश लांडगे को जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महेश लांडगे के इस प्रयासों की प्रशंसा की है और सुप्रिम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है। किसानों में खुशी की लहर है। 2024 लोकसभा चुनाव में अगर महेश लांडगे शिरुर सीट से ताल ठोंकते नजर आए तो कोई ताजुब नहीं।

 

बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट में 15 दिसंबर को सुनवाई हुई। सुनवाई न्यायमूर्ति खानविलकर की बेंच ने की। वरिष्ठ वकील सलाहकार मुकुल रोहतगी ने जोरदार तर्क दिया। सलाह अंतूरकर ने तर्क दिया,अखिल भारतीय बैलगाड़ी मालिक संघ के राधाकृष्ण ताकलीकर ने ऐसा बताया। सरकार 15 जुलाई,2011 के सर्कुलर के अनुसार,बैलों को जंगली जानवरों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। नतीजतन राज्य में बैलगाड़ी दौड़ पूरी तरह से बंद हो गई। ग्रामीण किसानों के इस पसंदीदा बैलगाड़ी दौड़ खेल की खोज में,बैलगाड़ी दौड़ प्रेमियों द्वारा बैलगाड़ी दौड़ शुरू करने और उन्हें बैलगाड़ी दौड़ के वर्गीकरण से मुक्त करने के लिए बैलगाड़ी दौड़ शुरू की गई थी। साथ ही कर्नाटक और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में सांडों की लड़ाई में ढील दी गई है। सिर्फ राज्य में ही बैन क्यों?ऐसी दलील कोर्ट में दी गई।

 

इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पहल पर अप्रैल 2017 में बैलगाड़ी दौड़ की सशर्त शुरुआत पर एक कानून बनाया है। हालांकि कुछ विरोधियों द्वारा कानून को अदालत में चुनौती दी गई थी। मुंबई हाई कोर्ट द्वारा बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका पर आज सुनवाई हुई। अदालत ने बैलगाड़ी प्रेमियों के पक्ष में फैसला सुनाया और सशर्त अनुमति के साथ बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दी।

 

मुकुल रोहतगी का तर्क

वरिष्ठ वकील वरिष्ठ परिषद सलाहकार मुकुल रोहतगी ने बहस करते हुए कर्नाटक और तमिलनाडु में चल रही बैलगाड़ी दौड़ की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बैल को संरक्षित जानवरों की सूची से बाहर रखा जाना चाहिए,अगर बैल की दौड़ने की क्षमता अंततः साबित हो जाती है,तो दौड़ को दौड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए,और यह कि नियम और शर्तों के साथ दौड़ को फिर से शुरू किया जाना चाहिए।

 

किसानों की बड़ी जीत:विधायक लांडगे

अदालत ने बैलगाड़ी प्रेमियों और किसानों के दाहिने पक्ष को समझा और सकारात्मक तरीके से फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद बीजेपी के शहर अध्यक्ष और विधायक महेश लांडगे ने कहा कि यह हर लिहाज से किसानों की बड़ी जीत है। उन्होंने उन सभी का भी धन्यवाद किया जिन्होंने पक्षपात को भूलकर बैलगाड़ी की दौड़ में योगदान दिया।

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