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पिंपरी चिंचवड स्मार्ट सिटी में 250 करोड़ का भ्रष्टाचार- सीमा सावले 

पिंपरी- स्मार्ट सिटी में लगभग 250 करोड़ रुपये के एलएंडटी के काम के लिए कोई तकनीकी मान्यता न होते हुए इसमें बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए नगरसेविका सीमा सावले ने इस मामले को उजागर किया है। सावले ने आरोप लगाया कि स्मार्ट सिटी के सलाहकारों,ठेकेदारों और अधिकारियों ने बजट तैयार करने और टेंडर जारी करने में भारी धोखाधड़ी की है। प्रशासन पिछले एक साल से सुनवाई करने या कोरोना के कारणों का सीधा सा जवाब देने का टाल रही थी। लगातार जाँच के बाद आज कमिश्नर राजेश पाटिल,स्मार्ट सिटी के अधिकारी राजन पाटिल,नीलकंठ पोमण,अशोक भालकर,सलाहकार और सभी 17 अधिकारियों की मौजूदगी में सुनवाई हुई।

 

केंद्र सरकार,राज्य सरकारों,महापालिका व करदाताओं को लगाया करोड़ों का चूना

सुनवाई के दौरान नगरसेवक सावले ने कहा कि जहां 2-5 लाख रुपये के विभिन्न कार्यों के लिए तकनीकी मंजूरी लेना क़ानूनी रूप से आवश्यक है,वहीं 250 करोड़ रुपये के कार्यों के लिए तकनीकी मंजूरी नहीं है। जिसे देख स्मार्ट सिटी के सीईओ कमिश्नर पाटिल भी हैरान रह गए। सलाहकारों,ठेकेदारों,अधिकारियों और कुछ राजनीतिक नेताओं ने केंद्र सरकार,राज्य सरकारों,महापालिका और करदाताओं को करोड़ों रुपये का चूना लगाया।

 

शहर का सबसे बड़ा घोटाला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्मार्ट सिटी एक बहुचर्चित परियोजना है। पिंपरी-चिंचवड़ स्मार्ट सिटी के विभिन्न कार्यों को लेकर नगरसेवक सावले ने एक साल पहले पालिका प्रशासन को पत्र लिखा था। पिछले सभी पत्रों का हवाला देते हुए नगरसेवक सावले ने इस पर तर्क दिया। सावले ने कहा कि पिंपरी-चिंचवड़ स्मार्ट सिटी में घोटाला शायद शहर में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। 250 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में सिटी नेटवर्क, सिटी वाईफाई,स्मार्ट कियोस्क,मैसेज डिस्प्ले का काम पूरे शहर में चल रहा है। महापालिका ने यह काम मेसर्स एलएंडटी कंपनी को सौंपा है। इस कार्य को कोई तकनीकी स्वीकृति नहीं मिली है। ऐसे में टेंडर जारी कर दिया गया है। मूल रूप से सवाल यह है कि बिना किसी तकनीकी मंजूरी के बजट कैसे किया गया,टेंडर कैसे जारी किया गया। जिन कार्यों में डीएसआर दर नहीं है,उनकी दरें आदेशित एवं प्रकाशित की जानी हैं। दरअसल, पिंपरी-चिंचवड़ शहर में काम करीब 500 किमी का भी नहीं है। इस तरह कागजों पर अतिरिक्त किलोमीटर का दिखा कर अधिक राशि का टेंडर आ गया। जिससे परियोजना की लागत में वृद्धि होकर और बजट अपने आप बढ़ गए।

 

विशिष्ट ठेकेदार को ध्यान में रखकर टेंडरिंग

दरअसल टेंडर विशिष्ट ठेकेदारों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। अर्थात इस कार्य के लिए निविदा में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी। सावले ने कहा कि परियोजना सलाहकार और ठेकेदार अन्य स्मार्ट सिटी शहरों में अन्य कार्यों के लिए समान हैं,इसलिए सभी काम मिलीभगत से किए गए हैं। शहर आयुक्त आयुक्त राजेश पाटिल ने संबंधित अधिकारियों से पूछा कि क्या कार्य के लिए तकनीकी स्वीकृति लेना अनिवार्य है और क्या चलन है। उस पर हाँ,हम पालिका के तकनीकी अनुमोदन के बिना कोई निविदा जारी नहीं करते हैं,सभी संबंधित अधिकारियों ने स्पष्ट उत्तर के साथ कहा।जिस पर कमिश्नर ने भी हैरानी जताई।

 

परियोजना का पूरा बजट गलत

जिससे यह भी साबित हो गया की विश्लेषण फर्जी है क्योंकि एलएंडटी के काम में कोई निश्चित दर नहीं है। इसलिए बिलों का भुगतान करना भी गलत और अवैध है। परियोजना सलाहकार ने परियोजना बजट तैयार करते समय बाजार की कीमतों की जाँच नहीं की गई हैं। इसलिए,बजट और कीमतों का विश्लेषण ठीक से नहीं किया गया है और परियोजना का पूरा बजट गलत है। पिंपरी चिंचवड़ स्मार्ट सिटी लिमिटेड और यह महापालिका के वित्तीय हितों के खिलाफ होने की बात सीमा सावले ने साबित की हैं।

तकनिकी मान्यता मतलब प्रत्येक कार्य के लिए तकनीकी स्वीकृति अनिवार्य है। किसी भी कार्य की लागत का आकलन करते समय उस कार्य के लिए आवश्यक घटकों,उसकी मात्रा और उनकी दरों का निर्धारण सरकारी मानकों के अनुसार करना होता है। जिन कार्यों के लिए सरकार द्वारा कोई आधिकारिक दरों की घोषणा नहीं की गई है,उत्पादकों या वितरकों द्वारा बाजार से अनुरोध किया जाता है। इसे सार्वजनिक किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के बाद कि वे उचित हैं,उस दर को अनुमोदित किया जाता है। इसके बाद तकनीकी निरीक्षण द्वारा इसे मंजूरी दी जाती है। इस प्रकार तकनीकी स्वीकृति के बिना निविदा प्रकाशित नहीं की जा सकती है। इसके बाद कार्य की लागत का अनुमान लगाकर अनुमोदित किया जाता है,जो वास्तव में स्वीकार्य है।

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