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भाजपा-मनसे के भरत मिलाप पर उत्तर भारतीयों की पैनी नजर

पुणे- महाराष्ट्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे के भरत मिलाप से उत्तर भारतीय समाज चौंकन्ना हो गया है। इस मिलन को उत्तर भारतीय लोग पचा नहीं पा रहे हैं। उनके जख्म फिर ताजे हो गए मानो कल की ही बात हो,जब मनसे के लोग राज ठाकरे के एक इशारे पर उत्तर भारतीयों पर जुल्म ए सितम ढहाए हो। कल्याण रेलवे स्टेशन पर रेलवे भर्ती की परीक्षा देने आए यूपी,बिहार के अभ्यार्थियों को राज ठाकरे की सेना ने किस तरह दौडा दौडाकर मारा,पीटा,लहुलूहान किया। उनके दस्तावेजों को छीनकर फाड़ दिए थे। महाराष्ट्र भर में उत्तर भारतीयों पर अत्याचार हुए। मराठी न बोलने पर चिन्हित करके मनसे स्टाइल में दंडित किया गया,मेहनत की कमाई वेतन तक छीने गए,डर,भय से सैकडों लोगों को जना बचाकर महाराष्ट्र छोडने पर मजबुर होना पडा। क्या यह उत्तर भारतीय समाज भूल गया? नहीं आज भी जख्म ताजा है केवल उसके उपर राख की परतें जमी गई। राख हटाने पर आग धधकता मिलेगा।

 

राजठाकरे-चंद्रकांत पाटिल का भरत मिलाप

महाराष्ट्र में शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस का महागठबंधन होने के बाद भाजपा-मनसे अलग थलग पड गए हैं। दोनों को एक दूसरे का सहारा चाहिए। यही कारण है कि भाजपा-मनसे का इन दिनों भरत मिलाप चल रहा है। आने वाले दिनों में मनपा का चुनाव साथ लडने का प्रयोग करने जा रहे है। पुणे में राजठाकरे और चंद्रकांत पाटिल की दो बार मुलाकात हो चुकी है। कल ही मुंबई में राज ठाकरे के कृष्णकुंज निवास पर चंद्रकांत पाटिल खुद चलकर मिलने पहुंचे। महाराष्ट्र में भाजपा के क्या इतने बुरे दिन आ गए कि उनके प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल को खुद राजठाकरे के घर जाना पडा।

 

राज ठाकरे के सामने एक तरफ कुंआ दूसरी ओर खाईं

भाजपा के सामने उत्तर भारतीयों के गुस्से की चिंता हैं। इस वोट बैंक पर भाजपा अपना एकछत्र अधिकार जताती है। लेकिन मनसे को साथ लेकर चलने में बडा रिश्क भी मानती है। यही कारण है कि हर मुलाकात में राजठाकरे से चंद्रकांत पाटिल कहते हैं कि पहले आप उत्तर भारतीयों के प्रति अपना स्टैंड साफ करो। ठाकरे के सामने अडचन यह है कि जिस मराठा वोट बैंक के सहारे राजनीति में कदम रखा और उत्तर भारतीयों के प्रति जहर उगला,मराठी वोट का क्या होगा? क्योंकि उत्तर भारतीयों के प्रति नरम रुख अपनाकर माफी मांगी और स्टैंड साफ कर भी लिया तो उत्तर भारतीय समाज माफ नहीं करेगा। लेकिन मराठी वोट अवश्य हाथ से खिसक जाएगा। मतलब एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाईं,उत्तर भारतीय गले में अटक गए हैं,अब न निगलते बनता हैं और न उगलते।

 

चंद्रकांत पाटिल के पास राज ठाकरे का वकालतनामा

चंद्रकांत पाटिल ने इन दिनों राजठाकरे का वकालतनामा लेकर घूम रहे है। मनसे प्रमुख के मन में उत्तर भारतीयों के लिए कोई कटुता नहीं ऐसा राग अलाप रहे हैं,जबकि राजठाकरे की ओर से अभी तक सार्वजनिक बयान नहीं आया। मतलब अभी भी वो अपने पुराने ढर्रे पर कायम है। इतना जरुर है कि भाजपा राजठाकरे की लगाई उत्तर भारतीय आग में जलने का जोखिम उठा रही है। महाराष्ट्र में करोडों की तादाद में बसे उत्तर भारतीय मतदाता अपने जख्मों को बिसराए नहीं,अगर भाजपा आग से खेलना चाहती है तो बडी कीमत चुकाने के लिए तैयार भी रहे।

 

उत्तर भारतीयों के जख्म आज भी ताजे

स्थानीय लोगों को नौकरी में 80 प्रतिशत वरीयता दी जाए,उत्तर भारतीय इसके विरोध में नहीं है। यह समाज मेहनतकश,कर्म,पऱिश्रम पर विश्वास करता है। इन्हीं हथियारों के दम पर अपने भाग्य का विधाता खुद बनता है। महाराष्ट्र के विकास,प्रगतिपथ का मिल का पत्थर बना। दो दो पीढियां महाराष्ट्र में गुजरी,फिर भी उनको आज उत्तर भारतीय,परप्रांतीय,भैइया…ना जाने किन किन शब्दों से समय समय पर अपमानित किया गया। लेकिन राजठाकरे और उनकी सेना ने उत्तर भारतीय पर सरेआम जुल्म ढहाकर न भूलने वाला जख्म दिया जो उत्तर भारतीयों के ललाट पर अमिट छाप है। राज ठाकरे एक अच्छे प्रवक्ता हैं इसमें कोई शंका नहीं,लेकिन ऐसे बयान,भाषण जिससे किसी समाज विशेष आहत हो,दिल छल्ली हो,अपमानित हो,इससे बचना चाहिए।

 

मनसे 13 विधायक से शुन्य पर

मनसे का गठन हुआ और पहला विधानसभा चुनाव लडा जिसमें कुल 13 विधायक महाराष्ट्र में निर्वाचित हुए। इतना ही नहीं नासिक महानगरपालिका में मनसे को सत्ता हासिल हुई। पुणे,मुंबई में मनसे के कई नगरसेवक चुनकर आए। महाराष्ट्र के लोग राजठाकरे को महाराष्ट्र का भविष्य भावी मुख्यमंत्री के रुप में देखने लगा। लेकिन उत्तर भारतीय रेलवे अभ्यार्थियों के साथ जिस प्रकार का अत्याचार मनसे के लोगों ने किया,शहर शहर,गली गली मनसे कार्यकर्ताओं द्धारा रक्तपात,तांडव को देखकर मराठी समाज का दिल भी रोया। लेकिन आज तक राजठाकरे और उनकी मनसे सेना का दिल नहीं पसीजा,कोई पछतावा नहीं। समय का चक्र चला और मराठी वोट बैंक भी बिदक गया। राजठाकरे के परप्रांतीय जहरीले बोल केवल यूपी,बिहारी को नहीं नागवार गुजरी बल्कि,कर्नाटक,केरल,तमिलनाडु,गुजरातियों को भी खटकी। 13 विधायक वाली पार्टी आज शुन्य पर आ गिरी। मनस पार्टी हासिए पर चली गई। राजठाकरे के सामने राजनीतिक भविष्य बचाने का संकट खड़ा हो गया। भाजपा-मनसे का अगर गठजोड बनता है तो इससे केवल मनसे को फायदा होगा,भाजपा का केवल नुकसान होगा,यह तय है।

 

कबीरा खड़ा बाजार में सबकी मांगें खैर…

उत्तर भारतीय समाज के बुद्धिजीवियों ने भाजपा को सलाह दी है कि राजठाकरे की लगाई गई उत्तर भारतीय,परप्रांतीय आग से दूर रहे तो बेहतर होगा…वर्ना गेहूं की तरह जिस प्रकार घुन पीसता है वही हाल भाजपा का महाराष्ट्र में हो जाए तो कोई ताजूब नहीं। बाकी आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति किस करवट बदलती है। कौन किसका नया सारथी बनता है? यह तो राम ही जानें। हम तो बस यही कहेंगे भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है,अपना भला बुरा खुद समझती है। हमारा क्या है,हम तो उस कबीरा की चौपाई हैं कि..कबीरा खडा बाजार में सबकी मांगें खैर…न काहू से दोस्ती न काहू से बैर…जय श्रीराम..जय महाराष्ट्र

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