पिंपरी– पिंपरी चिंचवड शहर में स्मार्ट सिटी का निगडी में कार्यालय है। इसके कुल 27 सर्वरों पर साइबर हमला हुआ। ठेकेदार कंपनी ने इस अटैक से 5 करोड रुपये का नुकसान होने का दावा ठोका है। इस मामले में पुलिस में ठेकेदार कंपनी की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गई है। मनपा में सत्ताधारी भाजपा के सत्तारुढ नेता का मानना है कि कोई नुकसान नहीं हुआ। साइबर हमला नहीं यह तो वायरस हमला है। पालिका के विरोधी नेता राजू मिसाल ने आज पत्रकार परिषद में सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि स्मार्ट सिटी सर्वरों को हाइजैक किया गया। इसके पीछे खतरनाक मंशा हो सकती है। सत्ताधारी भाजपा स्मार्ट सिटी के नाम पर केंद्र सरकार के पैसों की लूट कर रही है। 5 करोड का नुकसान इसका ज्वलंत उदाहरण है। अगर नुकसान हुआ तो ठेकेदार कंपनी को बताना चाहिए कि किस रुप में नुकसान हुआ। यह साबित करना होगा। सत्तारुढ नेता ऐसे बेजवाबदार बयान दे रहे है मानों वे स्मार्ट सिटी के कन्सलटंट हो। इस घटना के बाद अब शंका हो रही है कि सर्वर से छेडछाड करके कहीं प्रधानमंत्री आवास ड्रा में कोई गबबडी तो नहीं की गई। सारे प्रकरण की जांच हो,सच्चाई जनता के सामने आए,दोषी लोगों पर कार्रवाई हो ऐसी मांग राजू मिसाल ने की।
स्मार्ट सिटी के निगड़ी कार्यालय में एक नियंत्रण और कमांड सेंटर स्थापित किया गया है। घटना के लगभग ग्यारह दिन बाद, एक निजी कंपनी ने मामला दर्ज किया है। इससे एक संदिग्ध माहौल बन गया है।
मई टेक महिंद्रा को स्मार्ट सिटी से लगभग 450 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया है।
अकेले डाटा सेंटर पर लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च किए गए ह््ैं।
इतना खर्च करने के बाद भी इस डेटा सेंटर का डेटा सुरक्षित नहीं है।
संपूर्ण डेटा वर्तमान में हिंजवडी के एक निजी डेटा सेंटर में संग्रहीत है।
सर्वर और डेटा 19/02/21 से 21/2/21 तक ऑनलाइन बंद ह््ैं।
डेटा को एक नए बनाए गए डेटा सेंटर में निष्पादित करने की योजना बनाई गई थी। लेकिन कुछ अधिकारियों ने कहा
नए डेटा सेंटर के कामकाज पर आपत्ति करते हुए, यह ठीक से नहीं किया गया है और डेटा सुरक्षा की गारंटी देता है
यह सुझाव देते हुए कि डेटा को इस स्थान पर नहीं रखा जाना चाहिए। डेटा को विनाश से बचाया गया है। 150 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी सर्वर और डेटा सुरक्षित नहीं हैं, इसलिए पालिका ने अपना महत्वपूर्ण डेटा और सर्वर खो दिया है।
यहां निजी डेटा सेंटर में रखने का क्या मतलब है?
साइबर हमले से लगभग 5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ्।ऐसा दावा किया गया है।
इसी तरह से बड़ी मात्रा में जनता का पैसा लूटा जा रहा है। साइबर हमले के लगभग 10 से 12 दिन बाद एफआयआर दाखिल करने का उद्देश्य क्या है? क्या अफसर मामले को क्लीयर कर रहे थे? और क्योंकि ऐसा नहीं हुआ। क्या यह पैसे की बर्बादी नहीं है? सर्वर के साथ-साथ प्रमाणित पैनल एजेंसी या इसी तरह की एजेंसी में केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार डेटा
के माध्यम से जाँच क्यों नहीं? यह देखा गया है कि अधिकारियों को इस संबंध में तकनीकी ज्ञान नहीं है।
संबंधित सर्वर में फ़ायरवॉल था या नहीं,यदि कोई है,तो क्या वह चल रहा था? इसका अर्थ है फ़ायरवॉल को बंद करना और अनधिकृत सॉफ़्टवेयर को डाउनलोड या एन्क्रिप्ट करने का काम किया गया होगा। नुकसान की उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है। जिम्मेदार ठेकेदार,सलाहकार और संबंधित अधिकारियों से पूछताछ की जानी चाहिए और नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित लोगों पर तय होनी चाहिए्। इस मामले से संबंधित अधिकारी निश्चित रूप से जिम्मेदार ह््ैं। यदि ठेकेदार ने निर्धारित समय के भीतर और ठीक से काम नहीं किया है तो बिल का भूगतान कैसे हुआ? संबंधित को भुगतान कैसे किया गया और उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कुल मिलाकर परियोजना काम गौण है।
इसलिए इस काम में बहुत भ्रष्टाचार है। साथ ही 70%इन वस्तुओं का स्वामित्व पालिका के पास है। मुख्य सूचना और प्रौद्योगिकी अधिकारी की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज होना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। सत्ता में बैठे लोग ठेकेदार और अधिकारी को पाल रहे,बचा रहे और मिलकर बंदरबांट कर रहे है। इसलिए हम मांग करते हैं कि इस काम में शामिल सभी लोग अधिकारियों,अधिकारियों,ठेकेदारों और सलाहकारों की पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए