पिंपरी-भारत बंद के समर्थन में आज पिंपरी-चिंचवड शहर में विभिन्न जगहों पर धरना प्रदर्शन किया गया। विभिन्न दलों, सामाजिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों का समर्थन प्राप्त है। एक दिन पिंपरी में भूख हड़ताल की गई्। इस बीच आंदोलन में किसानों और श्रमिकों की पीठ पर खंजर भोंकने का आरोप लगाया गया। मोदी सरकार मुर्दाबाद,मोदी सरकार के साथ क्या करना है …भाजपा नेताओं के साथ क्या करना है… क्या करना है फासीवाद के साथ …. क्या करना है फासीवाद के साथ… जय जवान जय किसान,जैसे नारे आंदोलन के दौरान लगे। विभिन्न राजनीतिक दलों,सामाजिक संगठनों और ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों और कार्यकर्ता मौजूद थे। पंजाब के किसानों का एक समूह आंदोलन का समर्थन करने के लिए पिंपरी-चिंचवड आया था। उस समूह के सुखदेव सिंह ने कहा,हम जो संघर्ष कर रहे हैं, हम शांति से करना चाहते ह््ैं। यह किसी को खतरे में डालना या चोट पहुँचाना नहीं चाहता है। लेकिन मैं किसी के सामने झुकना नहीं चाहता। मारुति भापकर ने कहा, किसान देश की रीढ़ ह््ैं। केंद्र सरकार ने ऐसे कानून बनाए हैं जो पूंजीपतियों को किसान और मजदूर वर्ग को गुलाम बनाएंगे। मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान 400 से अधिक रैलियों में किसानों और श्रमिकों के लिए बेहतर कानून बनाने का वादा किया। लेकिन उन्होंने किसानों और कामगारों के साथ धोखा किया है।
सरकार ने मजदूर विरोधी, किसान विरोधी रुख अपनाया है। सरकार ने ऐसी अन्यायपूर्ण भूमिका कभी नहीं निभाई्। मजदूर और किसान अब जागे ह््ैं। दोनों एक साथ आ रहे हैं और अन्याय से लड़ रहे ह््ैं। वही किसान और मजदूर जो सरकार को सिंहासन पर बिठाते हैं, वही सरकार गिराएगी। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संशोधित किसान अधिनियम गारंटी के बारे में है। यह कानून किसानों के लिए नहीं बल्कि कंपनियों के लिए है। 1 लाख 20 हजार कुओं को केवल कागजों पर खोदा गया है, केवल कागज पर 33 करोड़ पेड़ लगाए गए ह््ैं।
पुलिस की पर्याप्त सुरक्षा
चूंकि बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा चौक में एकत्रित सुबह से हुए लोगों को छितर बितर किया गया। पिंपरी क्षेत्र में दो एसआरपीएफ दस्ते,एक आरसीपी दस्ते, 50 पुलिस और तीन परिवहन अधिकारी,28 कर्मचारी और 26 वार्डन तैनात किए गए थे। उपायुक्त मंचक इपर,असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस डॉ. सागर कवाडे,वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक मिलिंद वाघमारे,पुलिस निरीक्षक (अपराध) राजेंद्र निकालजे,यातायात विभाग के पुलिस निरीक्षक राजेन्द्र कुंटे उपस्थित थे। पूर्व विधायक गौतम चाबूकसवार ने कहा सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा है कि कृषि उपज मंडी समिति में खामियों को दूर करके कृषि जिंसों की कीमतें कम नहीं होंगी। सरकार की मंशा को लेकर संदेह जताया गया है और किसान गुस्से में ह््ैं।
संजोग वाघेरे ने कहा,नया कानून देश के कृषि क्षेत्र के लिए कम ब्याज ऋण और फसल बीमा की गारंटी नहीं देता है। सुलभा उबाले ने कहा, सरकार ईमानदार है, किसानों के लिए सब कुछ कर रही है; तो प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए राजमार्ग पर गड्ढे क्यों खोदें? पानी के फव्वारे और डंडों को चार्ज करके आंदोलन को कुचलने की साजिश क्यों? सरकार किसानों को देशद्रोही क्यों कह रही है? सामाजिक कार्यकर्ता मानव कांबले ने कहा,केंद्र सरकार के मजदूर विरोधी, किसान विरोधी कॉर्पोरेट कानून से भारी असंतोष है। सरकार को इन कानूनों को निरस्त करना होगा।
श्रमिक नेता कैलाश कदम ने कहा,कृषि वस्तुओं को बेचने और खरीदने के सभी अधिकार किसानों से छीन लिए गए। गणेश दराडे ने कहा, अगर किसानों के लिए इतनी ही दया थी तो आधे-अधूरे गारंटी और स्वामीनाथन आयोग की सात प्रमुख सिफारिशें नए कानून में शामिल नहीं थी्ं। कृषि बिल उन कंपनियों के हित में पारित किए गए हैं जिनके साथ किसान समझौते करना चाहते ह््ैं।अनिल रोहम ने कहा,महामारी के दौरान,श्रम कानूनों में बदलाव हुए, नए कृषि कानून पेश किए गए्। श्रमिकों के पास न्यूनतम वेतन 21,000 रुपये नहीं है और सरकार किसानों को सब्सिडी और बाजार मूल्य की गारंटी नहीं देती है।