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पिंपरी पालिका अतिरिक्त आयुक्त पद पर डिप्लोमा होल्डर

पिंपरी- पिंपरी चिंचवड मनपा में जब तक मेहरबानी की गागर छलकती रहेगी तब तक गलत निर्णय होते रहेंगे। योग्य अधिकारियों पर अन्याय होता रहेगा। पालिका में इन दिनों कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। आयुक्त श्रावण हर्डीकर की मेहरबानी से विद्युत विभाग संभाल रहे सह शहर अभियंता प्रविण तुपे को उठाकर सीधे अतिरिक्त आयुक्त पद पर बैठाया गया। तुपे इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा होल्डर है। किसी टेक्निकल व्यक्ति को अतिरिक्त आयुक्त पद पर नियमानुसार नहीं बैठाया जा सकता। इस पद पर सहायक आयुक्त को ही सीनियरिटी के अनुसार पदोन्नति देकर अथवा प्रभारी बनाकर नियुक्त किया जाना चाहिए था। जिसके लिए नगरसचिव उल्हास जगताप और सहायक आयुक्त आशा दुरगुडे, इंदलकर में से किसी एक को यह पद देना न्यायसंगत था। मगर ऐसा हुआ नहीं। नगरसचिव जगताप डिग्री होल्डर, एलएलबी, एलएलएम आदि डिग्रीयां हासिल की है। अतिरिक्त पद के लिए सबसे योग्य अधिकारी थे। एसी कोटा में भी बैठते है।

टेक्निकल व्यक्ति को व्यस्थापन का ज्ञान नहीं होता। उसे केवल इंजीनियरिंग से संबंधित ज्ञान होता है। डिप्लोमा होल्डर मतलब 10 वीं या 12 वीं पास लेवल पर इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा होल्डर बनना। पालिका में वर्तमान में तीन अतिरिक्त आयुक्त पद है। शासन नियमानुसार एक पद एसी के लिए रिजर्व है। प्रशासन की ओर से जो तर्क दिए गए वो यह कि प्रविण तुपे विद्युत के अलावा अन्य कई विभाग संभाल रहे थे जिसका उनको 10 साल से ज्यादा का अनुभव है। साथ ही उनको प्रभारी अतिरिक्त आयुक्त बनाया गया है। उनका रिटायरेंट का कार्यकाल 8 महिने बचा है तब तक के लिए इस पद पर रहेंगे। अतिरिक्त आयुक्त के लिए कम से कम 10 साल का अनुभव होना अनिवार्य होता है। लेकिन 10 साल व्यवस्थापन विभाग जैसे क्षेत्रिय अधिकारी, सहायक आयुक्त को लागू होता है। किसी टेक्निकल व्यक्ति को शहर अभियंता आखिरी पद तक पदोन्नति दी जा सकती है। मगर अतिरिक्त आयुक्त पद देना किसी को हजम नहीं हो रहा । आयुक्त के इस मेहरबानी का राज क्या है। जब इस बारे में खंगाला गया तो पता चला कि एक सत्ताधारी नेता के दबाव में यह सबकुछ हुआ। ज्यादा दिमाग पर जोर लगाने की जरुरत नहीं। आप पालिका सत्ताधारी भाजपा नेताओं पर से नजर हटाकर सोचो। हमारा इशारा सत्ताधारी राज्य सरकार की तरफ है।

आयुक्त के इस गलत निर्णय से पालिका अधिकारियों, कर्मचारियों का मनोबल टूटता है। मायूसी उत्पन्न होती है, प्रशासनिक कामकाज में असर पडता है। केवल अधिकारियों के साथ ही अन्याय नहीं होता पदाधिकारियों की नियुक्ति में भी मेहरबनी की गागर छलकती है। स्थायी समिति सभापति, महापौर पद,विधि समिति सभापति, सत्तारुढ नेता, उपमहापौर बनाने में भी कोई योग्यता नहीं देखी जाती। स्थानीय नेताओं की कौन कितनी सेवा,चापलूसी करता है उस योग्यता को देखकर पद दिया जाता है फिर चाहे वो अंगूठाछाप हो या 5 वीं 10 वीं फेल। उसे केवल हस्ताक्षर करना आता हो और पोपट जैसे बोलना जानता हो। पालिका कामकाज में सब एडजस्ट हो जाते है। यह परंपरा केवल आज की नहीं बल्कि राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकाल से चली आ रही है। राष्ट्रवादी की सत्ता के दौरान विधि समिति सभापति पद पर तो एक 4 थी पास नगरसेवक को सभापति बनाया गया था। विधि समिति मतलब किसी भी अधिकारी को पदोन्नति कानून देना है। वाद विवाद से संबंधित विषयों को कानूनी जांच पडताल करके मंजूर करना न करना सभापति का काम होता है। मतलब कानून की जानकारी सभापति को होना चाहिए। मगर साहब पिंपरी पालिका में कब सीधी गंगा बही है। भले चाहे ऐसे अंगूठे बहादूरों की सेवा में चायपान करने वाले डिग्री होल्डर शिपाई, चपरासी क्यों न लगे हो। अपनी पढ़ाई अज्ञानता को छुपाते हैं और पढ़े लिखे पालिका कर्मचारियों पर रुवाब जमाने से बाज नहीं आते। अगर हम ठेकेदार बिरादरी की बात नहीं करेंगे तो यह कहानी अधूरी लगेगी। यहां भी मेहरबानी की गागर खूब छलकती है। ठेकेदार अपना चाटूकार है, कमशिन का देनदार है भले ही उसके पास संबंधित ठेका के काम का अनुभव हो ना हो, मैैनपॉवर, मशीनरी हो ना हो स्थानीय नेताओं के आशीर्वाद से करोडों रुपये का ठेका झटक लेता है। यहां भी योग्यता की कोई मोल नहीं। मतलब सबसे बडा रुपैय्या..पैसा बोलता है। अब तो नई प्रथा चल पडी है ठेका लेना है तो कमिशन नहीं पार्टर बनाओ। पालिका तो दूधारु गाय पहले भी थी और कोरोना काल में आज भी है। हर पॉवरफुल आदमी मनचाहा दूध निकालता है और जी भरके पीता है।

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