पुणे गोरखपुर एक्सप्रेस में फाइनल सूची के श्रमिक बैठने से वंचित
पुणे रेलवे पैसा लेकर श्रमिकों को नहीं बैठा रही ट्रेनों में
पुणे रेलवे प्रशासन क्यों कर रही उत्तर भारतीय श्रमिकों से भेदभाव?
पुणे- पुणे रेलवे प्रशासन की तानाशाही, मनमानी और श्रमिक मजदूरों के प्रति अमानवीय व्यवहार उजागर हुआ है। श्रमिक मजदूरों के लिए राज्य सरकार की ओर से रेलवे की तिजोरी में पैसा जमा करने के बावजूद रेलवे प्रशासन श्रमिक मजदूरों को ट्रेन में बैठाने से इंकार कर रही है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पुणे कलेक्टर के आदेशों का पालन रेलवे प्रशासन नहीं कर रही है। पुणे के कलेक्टर के आदेशों की सरेआम धज्जियां उडाने का काम पुणे रेलवे कमर्मिशयल विभाग कर रहा है। पुणे जिला प्रशासन द्धारा सिटी पुलिस के माध्यम से जो फाइनल सूची दी जाती है उसमें से कई लोगों को ट्रेन में बैठने की अनुमति इसलिए नहीं मिलती कि उनके पास ट्रेनों में ज्यादा लोगों के बैठने की क्षमता नहीं। अगर इतने लोगों की बैठने की क्षमता सीट नहीं तो फिर राज्य सरकार से सभी श्रमिकों का पैसा क्यों ले रही है? क्या राज्य सरकार की तिजोरी को कोरोना संकट की घडी में रेलवे प्रशासन लूटने का धंधा बना रखी है? यह सबसे बडा सवाल है।
आओ समझाते हैं कि मामला क्या है। पुणे गोरखपुर स्पेशल श्रमिक ट्रेन क्र. 1831 के लिए पुणे जिला प्रशासन ने 1374 लोगों के नामों की सूची और पैसा रेलवे प्रशासन के हवाले किया। रेलवे ने इसमें से केवल 1280 लोगों को ही ट्रेन में बैठने की अनुमति दी। शेष बचे 94 श्रमिक मजदूरों को रेलवे स्टेशन परिसर से भगा दिया गया। छोटे छोटे बच्चों व महिलाओं के साथ शेल्टर होम से आऊट होने के बाद ये मजदूर आखिर कहां जाएं? मजदूर पिछले कई दिनों से नियमानुसार पंजिकरण, मेडिकल आदि प्रक्रिया से गुजरकर अंतिम सूची तक पहुंचे थे। अब रेलवे का यह कहना कि हमारे पास केवल 1280 लोगों के लिए ही जगह है तो फिर 1374 लोगों की सूची और पैसा पुणे जिलाप्रशासन से क्यों ली?
इस बारे में सिटी पुलिस के मिलिंद गायकवाड का कहना है कि जो सूची पुणे जिला प्रशासन के आदेशानुसार रेलवे प्रशासन को जमा की जाती है उस पर वो काटछांट करती है। रेलवे प्रशासन के लोग हमारी न तो सुनते है और न ही कोई सहयोग करते है। उनकी अपनी मनमानी चलती है। श्री गायकवाड को रेलवे से समन्वयक बनाने सूची तैयार करके सौंपने, ट्रेनों में अपनी मौजूदगी में श्रमिक मजदूरों को सीट तक पहुंचाने आदि की जवाबदारी सौंपी गई है। मगर रेलवे इनके पास से सूची और टिकट की धनराशि लेकर साइडलाइन कर देती है। रेलवे प्लेटफॉर्मों पर एसीपी, डीसीपी अधिकारी मौजूद रहते है लेकिन रेलवे का कमर्शियल विभाग के सीनियर डीसीएम सुनिल मिश्रा समेत कोई भी वरिष्ठ अधिकारी प्लेटफॉर्मों पर नजर नहीं आते। मानो श्रमिकों पर अहसान कर रहे हो। कमर्शियल विभाग किसी भी प्रकार से सिटी पुलिस और जिला प्रशासन को सहयोग नहीं कर रहे। यहां तक कि राज्य के मंत्री विश्वजीत कदम के फोन तक नहीं उठाते। किसी को भी प्रॉपर जवाब तक नहीं देते। रेलवे प्रशासन का व्यवहार उदासीन भरा है।
पुणे साधू मिशन के लोग प्लेटफॉर्म पर हर श्रमिकों को पानी की बोतल, बिस्कुट, गुड, ताक का पैकेट खाना आदि मुफ्त में वितरण कर रही है। ऐसी संस्था पद्मश्री आवार्ड से सम्मानित करने योग्य है। लेकिन पानी की बोतल जो बच जाती है उसे भी पुणे रेलवे कमर्शियल के लोग हडप कर जाते है। रेलवे विभाग के सीपीआरओ शिवाजी सुतार लगातार मीडिया के संपर्क में है और हरसंभव प्रयास कर रहे है। लेकिन पुणे रेलवे कर्मिशयल के सीनियर डीसीएम सुनिल मिश्रा लगातार श्री सुतार को गुमराह करके गलत जानकारी दे रहे है।
इस बारे में जब हमारे संवाददाता ने रेलवे के डीआरएम, सीनियर डीसीएम और जनसंपर्क अधिकारी से जानकारी चाही तो कुछ अधिकारी फोन नहीं उठाए और कुछ बात करने से इंकार कर दिया।