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नाकाबंदी सुरक्षा में तैनात ट्रॉफिक पुलिसवाले खुद असुरक्षित

पुणे- समूचे देश भर में कोरोना का कहर जारी है उससे अब पुलिस भी अछूती नहीं रही। अब तो पुलिस की जान पर बन आयी है। हाल ही में देखा गया कि मुंबई में पुलिस वाले की कोरोना से मौत हो गई। कई पुलिस वाले कोरोना के रडार पर है। जाने इस पर कब तक अंकुश लग पाएगा?
इससे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आज भी सबक नहीं ले रहे। हमारे संवाददाता ने जब पुणे और पिंपरी चिंचवड शहर का जायजा लेने निकले तब ये तस्वीर सामने आती है कि पुलिस वालों की दुर्दशा की जवाबदार वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तथा महाराष्ट सरकार है। आज देखा जा रहा है कि दोनों शहरों में कई जगह नाकेबंदी पर 24 घंटे पुलिस पहरा दे रही है ताकि शहरवासी चैन से रहे सुरक्षित रहे। कल हमारे संवाददाता ने यह भी देखा की कई गाडियां चेकिंग के दौरान ऐसी पायी गई कि यातयात नियम तोडने के पुराने दंड ऑनलाइन दिख रहे है। जिस पर पुलिस कर्मचारियों को वाहन चालक से दंड भराने के लिए कहा जाता है। तथा उनके बैंक से संलग्न कार्ड(एटीएम) लेकर उनके दंड की रकम वसूल की जा रही है। वहीं भारतीय दंड संहिता 188 के तहत कार्रवाई करने का भी फरमान राज्य सरकार के दिशा निर्देशानुसार वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कर्मचारियों को दिया है।
सबसे बडा सवाल यह उठता है कि कोविड-19 नियम के अनुसार सुरक्षा की दृष्टिकोण से कम से कम एक मीटर की दूरी बनाना अनिवार्य है। पर ऐसे हालात में पुलिस वाला या चौराहे पर काम कर रहे पुलिस वाले कैसे दूरी बना सकते है? संदिग्ध लोगों को रोकना है जांच करना है उनके पास पहचानपत्र और पास को हाथ में लेकर जांच करना ही पडता है। दंड वसूलने हेतू एटीएम कार्ड लेने के लिए उन्हें वाहन चालक के संपर्क में आना ही पडता है।
कल हमारे संवाददाता ने सर्वे के दौरान यह भी देखा की पुलिस कर्मियों को इस चिलचिलाती धूप में खडे रहकर डियूटी करनी पड रही है। उनके लिए पर्याप्त मूलभूत सुविधा जैसे धूप से बचने हेतू छतरी, पीने का पानी, लघु शंका हेतू कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है। दुर्दशा तो यहां तक है कि 60 प्रतिशत पुलिस कर्मियों के पास हाथ के हैंडग्लोज तक फटे हुए है। सेनिटाइजर की कमतरता है। ऐसे में एक पुलिस वाला जब अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन बिना किसी संकोच के करता है तो उसे यह भी नहीं पता होता है कि कौन सा वाहन चालक कोरोना से संक्रमित है।
इसी कडी से एक पुलिस वाला दुर्भाग्यवश किसी संक्रमित के संपर्क में आता है और वही दूसरे पुलिस वाले के साथ खाना खाता है, उठता बैठता है, इससे बडे आसानी से कई पुलिस वालों पर यह खतरा होने की संभावना को नाकारा नहीं जा सकता।
इस पर कई पुलिसवालों से जब इसके बारे में पूछा गया तब छनकर यह बातें सामने आयी कि वो तो अपने पुलिस वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का पालन करते हैं। सवाल यह भी उठता है कि क्या वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस समस्या से अनजान है या जानबुझकर अनजान बन रहे है? एक तरफ तो इस महामारी ने देश में कोहराम मचा रखा है। वहीं ट्रॉफिक पुलिस तथा पुलिस अपनी जान दांव पर लगाकर अपने कर्तव्यों का पालन चौराहे, गलियों पर कर रहे है। क्या इन सब बातों को वरिष्ठ अधिकारी गंभीरता से लेंगे? इनकी सुरक्षा हेतू उत्तम मास्क अच्छे क्वालिटी के हैंडग्लोज समेत मूलभूत सुविधा उपलब्ध करा पाएंगे? या इस महामारी के थमने तक जारी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाएं?

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