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रामलला के मजदुरों को रोटियों के लाले, पैदल चलने से पैरों में पडे छाले

लॉकडाउन में कारखाने बंद हो गए्। आटा-दाल मिल नहीं रहा था, रोटी के लाले थे, इसलिए घर जाना मजबूरी हो गया। बस मिली नहीं, ट्रक चल नहीं रहे थे, इसलिए हजारों लोग पैदल ही निकल पड़े। सिर पर सामान और मन में किसी भी तरह घर पहुंचने का लक्ष्य। कोई अयोध्या से चला है तो कोई दिल्ली से, 100 से 200 किमी तक पैदल चलना पड़ रहा है, पांव में छाले हैं, मगर सफर जारी है। सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है। लॉकडाउन में मुसीबत का बोझ लेकर पैदल चल रहे इन लोगों की दास्तां दिल को झकझोरने वाली है।
      प्रभू श्रीराम की नगरी अयोध्या से अगर कोई भूखा सो जाए, भूखा अयोध्या छोड दे और वो मजदुर जो कई सालों से राममंदिर निर्माण कार्य में पत्थरों को तलाशने वाले कारीगर हो तो सारे साधू संत समाज के लिए इससे बडी शर्म की कोई और बात हो नहीं सकती। अयोध्या में इतने बडे बडे मठ है। धर्मशालाएं, आश्रम है जहां अन्नधान्य, पैसे से भरे पडे है। अगर कई महिनों तक हजारों लोगों को बैठकर खिलाना पड जाए तो भी कम पड जाए। ऐसे संपन्न अयोध्यानगरी से रामलला के मंदिर तराशने वाले कारीगर भूख प्यास से तडप तडप कर अयोध्या से पलायन कर रहे है। बहुत बडा सवाल रामभक्तों और भाजपा के अंधभक्तों और गोबरभक्तों पर उठता है कि वाट्सअ‍ॅप पर दिन रात अव्वल रहने वाले ये भक्त किस चूहे के बिल में जा घूसे। रामभक्ति दिखाने और सेवा कार्य करने का इससे बडा और क्या मौका मिल सकता है। ये भक्त चूहे के बिल से निकलेंगे कब जब देश से कोरोना संकट का संकट खत्म हो जाएगा।  फिर वही मोर्चा संभालेंगे और वाट्सअ‍ॅप पर रामभक्ति, मोदी भक्ति की बिम बजाते दिखाई देंगे।
  अयोध्या से पैदल आगरा पहुंचे राजस्थान के कारीगर हीरालाल
राजस्थान के सवाई माधोपुर के हीरालाल अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर तराश रहे थे। उन्होंने बताया कि पूरा परिवार इसी काम में लगा था। लॉकडाउन होते ही काम बंद हो गया। आसपास की दुकानें बंद हो गई्। आटा-दाल मिले नहीं, इसलिए घर चल दिए्। कहीं ट्रक में बैठे, कहीं ऑटो में, पांच दिन हो गए हैं, 200 किमी. पैदल चलना पड़ा है। आगरा आते-आते पैरों में छाले पड़ गए हैं, रोटी तक मिली नहीं, सिर्फ पानी पी रहे ह््ैं। अब हिम्मत नहीं है, बस अड्डे पर बस का इंतजार करेंगे।
    अयोध्या में रोटी मिलती तो हम क्यों भटकते
अगर अयोध्या में ही भोजन का इंतजाम हो जाता है तो हम लोगों को यूं क्यों भटकना पड़ता। पांच दिन से परिवार को साथ लेकर दिन रात चल रहे ह््ैं। न नहाए हैं, न खाना मिल रहा है, अब हिम्मत जवाब दे रही है। यह कहना था कि सवाई माधोपुर के ही सुरेश का। वो भी अयोध्या में पत्थर तराशने का काम कर रहा था। अब तो बस प्रभु से यही प्रार्थना है कि किसी भी तरह घर पहुंच जाए्ं।

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