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हाइवे बना बिस्तर, ईंट पत्थर बने तकिया

आगरा- देश में लॉकडाउन मतलब तालाबंदी मतलब कामकाज ठप्प। हाथ में काम नहीं घर में अनाज नहीं, बच्चों को खिलाने को एक निवाला नहीं लोग करें तो क्या करें। चल पडे पैदल अपने मूलगांव की ओर। जहां थक गए, रात हो गई उसी हाइवे को अपना बिस्तर बना लिया और ईंट पत्थरों को तकिया बनाकर सो गए। भोर होते ही बिना खुछ खाए पिए निकल पडे अपनी मंजिल का कम करने के वासते। पूरे देश में यही आलम है यही दर्दभरी कहानी है।
    आगरा के इंटरस्टेट बस टर्मिनल (आईएसबीटी) पर शनिवार रात को दो बजे भी दिन सा नजारा दिखा। 20 हजार से ज्यादा मजदूर सड़क पर भटक रहे थे। कोई 100 किमी पैदल चलकर आया तो कोई 200 किमी। घर अभी दूर था। बस पता नहीं कब आएगी, आंखों में नींद थी। जो बैठा, उसे ही झपकी लग गई्। बिस्तर की जगह हाईवे था, ईंट तकिया बनी थी। खुले आसमान के नीचे इन मुसीबत के मारों की रात कटी मगर डरते-डरते। डर था बस छूट जाने का, इसलिए बीच-बीच में जागकर पड़ोस वाले से पूछते रहे, भैया हमारी बस तो नहीं आई्। पुलिस और रोडवेज के लाउडस्पीकर बता रहे थे कि कहां के लिए कौन सी बस चलने वाली है? मजदूरों के कान इसी पर पर लगे थे।
   इस भीड़ में बच्चे भी थे और महिलाएं भी्ं। चिंता सबकी एक थी, घर कैसे पहुंचेंगे। दिल्ली और हरियाणा से कोई कैंटर से आया, कोई ट्रक से। जहां तक वाहन मिले, वहां तक उसमें सवार हुए्। बाकी पैदल चले। रास्ते में भोजन नहीं मिला, न सही, बहुत देर देर तक प्यासा रहना पड़ा, उसकी भी चिंता नही्ं। बस चले जा रहे थे। आईएसबीटी पर आकर ठहर गए्। गांव में गेहूं काटेंगे… पेट तो भरेगा
आईएसबीटी के ठीक सामने हाईवे के निर्माणाधीन फ्लाईओवर के बीच में लेटे संदीप ने बताया कि दिल्ली में बसें चल रही थीं, हमने सोचा कन्नौज के लिए भी मिल जाएंगी। यूपी बॉर्डर पर आए 100 रुपये में ट्रक वाला पूरे परिवार को मथुरा तक ले आया। वहां आकर पता चला कि यूपी में कोई बस नहीं चल रही, इसलिए वहां से पैदल आना पड़ा। अब गांव में पहुंचना है, वहां गेहूं की कटाई करेंगे, कम से कम खाना तो मिल ही जाएगा। झांसी की रजनी का कहना था कि गुरुग्राम में पति बेलदारी करता है। लॉकडाउन होते ही पास की दूध की दुकान बंद हो गई्। बच्चे छोटे हैं, उन्हें दूध नहीं मिल पा रहा था। सुबह से ही बिलखने लगते थे, तीन दिन तो सहन किया, अब देखा नहीं जा रहा था, इसलिए पैदल ही चल दिए्। गाव पहुंच जाएंगे तो दूध तो मिल जाएगा। गुरुग्राम में भी मजदूरी कर रहे थे, झांसी में भी कोई न कोई काम तो मिल ही जाएगा।
    दो दिन के लिए ट्रेन चला दें… सब पहुंच जाएंगे
कन्नौज जा रहे मनोज ने कहा कि योगीजी ने बसें चलाई हैं लेकिन ये बहुत कम ह््ैं। आगरा में ही एक लाख से ज्यादा लोग आ चुके ह््ैं। ये बस से कैसे जाएंगे। दो दिन के लिए ट्रेनें चला दी जाएं तो सभी अपने-अपने घर के पास पहुंच जाएंगे। थोड़ा बहुत पैदल चल लेंगे।इससे सड़कों पर भीड़ कम हो जाएगी।

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