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यूपी-बिहारी सडक पर लावारिस, राज्य सरकारों की कीचडबाजी

पिंपरी-देश के प्रधानमंत्री की एक आवाज पर कर्फ्यू लगा, 21 दिनों का लॉकडाउन हुआ। ट्रेनें, बस, हवाई सेवाएं ठप्प हुई। इसी के साथ लाखों दिहाडी मजदुरों, कामगारों के हाथों रोजी रोटी छीन गई। भूख प्यास से बिलबिलाने लगे। इसमें से अधिकांश मजदुर युपी-बिहार के है जो गांव की ओर पलायन कर रहे है। छोटे बच्चों को कंधे पर उठाकर, बूढे मां बाप को कंधे पर लाद कर सैकडों किमी पैदल चलकर पलायन कर रहे है। यह तस्वीर जब मीडिया के माध्यम से देश दुनिया ने देखा तो सबका कलेजा फट गया। आंखें नम हो गई। अगर किसी का दिल नहीं पसीजा वो है तीन राज्यों की सरकार और उनके मुख्यमंत्रियों का।
     आनंदविहार बस अड्डे पर हजारों की तादाद में लोग इकट्ठा हुए। लॉकडाउन का सरेआम आम उल्लंघन हुआ। क्योंकि दिल्ली सरकार, यूपी सरकार और बिहार सरकार के बीच तालमेल का अभाव रहा। तीनों सरकारों के गोबर भक्तों ने एक दूसरे पर गोबरबाजी की। जवाबदारी लेने को कोई तैयार नहीं। सबसे ज्यादा बिहार की नीतिश सरकार संवेदनहीन निकली। यह कह देना कि अगर बिहार से प्रेम है तो जो जहां है वहीं रहे। इतना कह देने से क्या नीतिश कुमार की जवाबदेही समाप्त हो जाती है? बिहार सरकार को अपनों के लिए वाहन व्यवस्था, भोजन व्यवस्था, निवास व्यवस्था, मेडिकल सुविधा पहुंचाने का दायित्व नहीं बनता। ये वही जनता है जो पिछले 15 सालों से नीतिश को बिहार का मुख्यमंत्री बना रखी है। केवल सुशासन बाबू की उपाधि लेने से काम नहीं चलेगा। संकट की इस घडी में जहां तहां फंसे परेशान बिहारियों को मदद के लिए तुरंत कदम उठाना भी जिम्मेदारी बनती है। अगर इनके वोट से सरकार आप बनाओगे तो सेवा कोई दूसरी सरकार नहीं करेगी।
    यूपी सरकार और दिल्ली सरकार सीमा तय कर रहे हैं, कौन किसके लिए बस छोडेगा या नहीं इस पर सिर फुटावल हो रहा है। दिल्ली से पलायन कर रहे इन भूखे प्यासे अपने ही लोगों को युपी की योगी सरकार और बिहार की नीतिश सरकार अपनाने को तैयार नहीं। ये लोग दिल्ली में ही रहे। लेकिन इनके खाने पीने रहने मेडिकल आदि मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति कौन करेगा। क्या केवल अकेले दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है? केजरीवाल सरकार ने बस अड्डों को खोलकर गलती की। एक़ साथ हजारों लोगों का बस अड्डों पर मेला लगाना किसी खतरे से कम नहीं। अगर एक भी व्यक्ति को कोरोना पॉजिटिव रहा तो अनुमान लगा सकते है कि कितने लोगों को अपनी चपेट में ले लेगा।
    यूपी बिहारी अक्सर कहते हैं कि हम देश की सरकार के चालक है। लेकिन आज वही लोग दर दर की ठोकर खाने पर विवश है। महाराष्ट्र के अखबार बडी बेशर्मी से लिखते है कि यूपी बिहार के लोंढों का पलायन हो रहा है। ट्रकों में भरकर जानवरों की तरह पलायन हो रहा है। अब क्या हम फिर भी कहेंगे कि देश की सरकार हम चलाते है। लोंढा और परप्रांतीय जैसे शब्द नासुर बनकर चुभते है। अगर यूपी बिहार में अब तक बनीं सरकारें अपने अपने राज्यों में रोजगार, शिक्षा, मेडिकल, इंजीनियरिंग क्षेत्रों में ध्यान दी होती तो वहां के लोगों को महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात जैसे विकसित राज्यों में आने की जरुरत नहीं पडती। लोंढे और परप्रांतीय जैसे अपमानित शब्द को सुनना नहीं पडता। यूपी ने अब तक 7 प्रधानमंत्री देश को दिए। वहां के लोग कहते है यूपी देश को चलाता है। युपी देश का प्रधानमंत्री बनाता है। अब यह शब्द चुभने लगे है। राज्य सरकारें कितनी संवेदनशील है इसकी पोल पलायन ने खोल दी साथ ही यूपी बिहार के लोगों का यह भ्रम भी तोड दिया कि वो देश के चालक मालक है।

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