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पुणे के होस्टलों में छात्रों का बुरा हाल, आत्महत्या जैसे विचार

पुणे-कोरोना के चलते लॉकडाउन इतना लंबा खींच जाएगा शायद पुणे विद्यानगरी में पढने और होस्टलों में रहने वाले छात्रों को मालूम नहीं था। अपनों से दूर उनकी निरंतर सता रही याद, पाकिट मनी खत्म, भूख से बिलबिलाने को मजबुर की हालात में पहुंच चुके छात्रों के मन में अब आत्महत्या जैसे विचार आने लगे है। कुछ समाजसेवी संस्थाएं, सेवाभावी लोग भोजन पानी की व्यवस्था कर रहे लेकिन हर जगह पहुंचना संभव नहीं।
      लॉकडाउन के दौरान कई ऐसे लोग हैं जो वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं वहीं कुछ ऐसे स्टूडेंट्स भी हैं जो घर नहीं जा पाए्। कम पॉकेट मनी और जरूरी सामान खरीदने के लिए कोई माध्यम न होने से इन छात्रों पर मुसीबत आ पड़ी है। पूरब के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले पुणे में जो छात्र अपने घर नहीं जा पाए, वे बस दिन गिन रहे हैं कि ये लॉकडाउन जल्द ही खत्म हो जाए्। घर से दूर होने की वजह से कुछ को आत्महत्या करने के विचार भी आ रहे ह््ैं।
नवी पेठ स्थित एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ने वाली 27 साल की दीपाली पाटिल कहती हैं, ’कई स्टूडेंट्स 11-12 मार्च को चले गए थे। मैंने अपनी रूममेट के साथ यहीं रुकने का फैसला किया, क्योंकि हम दोनों को पढ़ाई करनी थी लेकिन ये नहीं सोचा था कि स्थिति इतनी खराब हो जाएगी। कुछ ग्रुप हैं जो हमें खाना दे रहे हैं लेकिन ज्यादातर हम लोग नूडल्स और बिस्किट पर गुजर-बसर कर रहे ह््ैं।’
’साथियों से मिल रही है मदद’
दीपाली कहती हैं, ’कभी-कभी बहुत अकेला महसूस होता है और परिवार के साथ रहने का मन होता है। दिमाग में सूइसाइड विचार आ रहे ह््ैं। लेकिन एमपीएससी की तैयारी कर रहे बाकी साथियों से मुझे काफी सहयोग मिल रहा है इसलिए मैं रिकवर कर रही हू्ं। जिस दिन पीएम मोदी ने 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया, उस दिन मैं टूट गई्।’
’ग्रॉसरी की दुकानें बंद हैं’
शनिवार पेठ में रहने वालीं दूसरी छात्रा अदिति काले ने बताया, ’हम घर से बाहर निकलने में भी डर रहे हैं क्योंकि हमने कई ऐसे विडियो देखे जिसमें पुलिस युवाओं को पीट रही है। ज्यादातर ग्रॉसरी की दुकानें बंद हैं और हमें फूड आइटम भी नहीं मिल रहे ह््ैं। मुझे टेंशन है कि आगे कैसे मैनेज होगा सब।’
’पुलिस की इजाजत अभी नहीं मिली’
कुछ सोशल वर्कर इन छात्रों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पुलिस की इजाजत अभी नहीं मिली है। वे लोग फूड पैकेट सप्लाइ करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं दिन भर के खाने के लिए यह काफी नहीं हो पा रहा है।
’योगा या मेडिटेशन से बेहतर रहेगा मन’
साइकॉलजिस्ट हिमांशू चौधरी ने बताया, ’इस तरह की परिस्थिति में युवा कुछ ज्यादा सोच लेते हैं, ऐसे में नकारात्मक विचार आते ह््ैं। इसके लिए योगा, मेडिटेशन या फिर फाइन आर्ट के जरिए खुद को व्यस्त किया जा सकता है और यह शरीर के लिए फायदेमंद भी है। म्यूजिक से भी आराम मिलेगा।’

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