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कच्ची शराब बेचने वाली माँ का लाल बना कलेक्टर

नंदूरबार-आयएएस की कठिन पढ़ाई के लिए द्ेश भर में बडे बडे कोचिन कलास में माता पिता अपने बच्चों के लिए लाखों रुपये बर्बाद कर देते है फिर भी परीक्षा पास नहीं कर पाते। लेकिन एक ऐसा लाल जिसकी माता कच्ची शराब बेचती थी और बच्चा शराबियों को स्नैक्स लाकर द्ेता था उसके बदले में मिलने वाले टिप्स के पैसों को इकट्ठा करके किताबें खरीदा और झुग्गी में रहकर नुक्कड के चबुतरे में बैठकर पढाई की और कलेक्टर बन गया। यह आश्चर्य चकित करने वाली बात है लेकिन यह सत्य है। नंदूरबार के धुले में ऐसा ही एक नगीना कोयले की खदान से निकलकर कलेक्टर बना है।

महाराष्ट्र के धुले जिले के डॉ राजेंद्र भारूड़ के जीवन की कहानी प्रेरणादायक ही नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए मिसाल है, जो हर चीज के लिए सुविधाएं नहीं होने का जिक्र करते हैं। डॉ. राजेंद्र भारूड ने अपने जीवन में बेहद संघर्ष किया और कलेक्टर बने। उन्होंने बताया, मैं गर्भ में था, तभी पिता गुजर गए। मुझे पिता की फोटो देखने का भी सौभाग्य नहीं मिला। कारण- पैसों की तंगी। हाल यह था कि एक वक्त का खाना भी बमुश्किल जुटा पाता था। गन्ने के खरपतवार से बनी छोटी सी झोपड़ी में हमारा 10 लोगों का परिवार रहता था। जब मैं गर्भ में था, तब लोग मां को सलाह देते थे कि गर्भपात करवा लो। एक लड़का और लड़की तो है। तीसरे बच्चे की क्या जरूरत? क्या खिलाओगी? लेकिन, मां ने मुझे जिंदा रखा। मैं महाराष्ट्र के धुले जिले के आदिवासी भील समाज से हूं। बचपन में मेरे चारों तरफ अज्ञान, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी और भांति-भांति के व्यसनों का दंश था। मां कमलाबहन मजदूरी करती थीं। 10 रु. मिलते थे। इससे जरूरतें कैसे पूरी होती? इसलिए मां ने देसी शराब बेचनी शुरू की। मैं तब 2-3 साल था। भूख लगने पर रोता तो शराब पीने बैठे लोगों के रंग में भंग पड़ता। कुछ लोग तो चुप कराने के लिए मेरे मुंह में शराब की एक-दो बूंद डाल देते। दूध की जगह दादी भी एक-दो चम्मच शराब पिला देती और मैं भूखा होते हुए भी चुपचाप सो जाता। कुछ दिनों में आदत पड़ गई।

घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ाई की राजेंद्र ने बताया कि सर्दी-खांसी हो तो दवा की जगह दारू मिलती। जब मैं चौथी कक्षा में था, घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ने बैठ जाता था। लेकिन, पीने आने वाले लोग कोई न कोई काम बताते रहते। पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे। उसी से किताबें खरीदीं। 10वीं 95% अंकों के साथ पास की। 12वीं में 90% लाया। 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठा। ओपन मेरिट के तहत मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। 2011 में कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट बना। उसी साल यूपीएससी का फॉर्म भरा। कलेक्टर बना। लेकिन, मेरी मां को पहले कुछ पता नहीं चला। जब गांव के लोग, अफसर, नेता बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि राजू (दुलार से) कलेक्टर की परीक्षा में पास हो गया है। वह सिर्फ रोती रहीं। राजेंद्र ने कहा, एक दिन शराब पीने घर आने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि पढ़-लिखकर क्या करेगा? अपनी मां से कहना कि लड़का भी शराब ही बेचेगा। भील का लड़का भील ही रहेगा। मैंने ये बात मां को बताई। तब मां ने संकल्प किया कि बेटे को डॉक्टर-कलेक्टर बनाऊंगी। लेकिन, वह नहीं जानती थी कि यूपीएससी क्या है। लेकिन, मैं इतना जरूर मानता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, मां के विश्वास की बदौलत ही हूं।

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