- रेलवे के पास फंड नहीं, 25 हजार करोड ठेकेदारों के अटके
- भूगतान न होने पर होली बाद रेलवे ठेकेदार करेंगे बेमुद्त काम बंद हडताल
- रेलवे के बडे प्रोजेक्टों पर पडेगा बुरा असर
- रेलवे के भ्रष्ट्र अधिकारियों की दादागिरी, प्रेशर से देश के रेलवे ठेकेदारों में आक्रोश
- हैदराबाद का एक ठेकेदार ने कर ली आत्महत्या
- रेलवे अधिकारी ठेकेदारों पर प्रेशर, नोटिस, ब्लैकलिस्ट में डालने की देते हैं धमकी
- काम पूरा होने पर भी नहीं किया जाता भूगतान
- ठेकेदारों के सामने स्टाफ, लेबर और सप्लायरों को भूगतान करने की बडी समस्या
- रेलवे अकाऊंट विभाग में लगा है नो फंड के फलक
पुणे- देश की धडकन रेलवे विभाग इन दिनों दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है। रेलवे के करीबन 5 हजार ठेकेदारों के 25 हजार करोड रुपये का भूगतान न होने से ठेकेदार भी कंगाल हालत में पहुंच गए गए है। भूगतान को लेकर देश के रेलवे ठेकेदार 6 मार्च को सांकेतिक हडताल पर जाने का एलान कर चुके है। इससे रेलवे के कामकाज पर बुरा असर पडेगा। अगर होली तक ठेकेदारों के प्रलंबित कामों के बिलों का भूगतान नहीं किया गया तो होली बाद रेलवे के ठेकेदार अनिश्चितकालीन काम बंद हडताल पर चले जाएंगे। ऐसी जानकारी एक प्रेस वार्ता में ठेकेदारों की राष्ट्रीय असोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बालकिशन और महामंत्री राजेश ने दी। इन्होंने आगे कहा कि रेलवे में डिविजन स्तरीय छो टे बडे काम निकलते है। यह काम पटरियों की मरम्मत, दुरुस्ती, प्लेटफार्मों की मरम्मत, रंगरोगन जैसे छोटे रिनिवल के काम होते है। जो 10 लाख, 20 लाख से एक करोड तक के काम होते है। ठेकेदार अपना पैसा जेब से लगाकर काम करवाते है और जब बिल पेश करते है तो रेलवे के ठेकेदारों को अनगिनत कारण बताकर मानसिक रुप से प्रताडित किया जाता है। नो फंड का हवाला देकर ठेकेदार को आत्महत्या करने तक मजबुर करते है। ये वो भूगतान होता है जिसे मोटे शब्दों में घर का खर्च कहते है। अगर घर का खर्च महिने में नहीं मिला तो घर कैसे चलेगा। ठेकेदार के सामने अपने लेबर, स्टाफ, सप्लायर को भूगतान करने का पैसा नहीं होता। रेलवे अधिकारी 24 घंटे काम करने के लिए प्रेशर डालते है ऐसा न करने पर ब्लैकलिस्ट में डालने, टरमिनेट करने, नोटिस देने की धमकी द्ेकर आत्महत्या करने पर मजबुर करते है। इतना ही नहीं ठेकेदार के कर्मचारियों को थप्पड तक जड देते है। रेलवे के बडे प्रोजेक्ट के टेंडर भी निकलते है जैसे कि रेलवे की बिल्डिंग बनाना, नई पटरियां बिछाना, नए प्लेटफॉर्मों की निर्मिती करना इत्यादि। ये टेंडर करोडों से लेकर अरबों रुपये के होते है। इन कामों के ठेकेदारों के अरबों रुपये का भूगतान रेलवे विभाग रोककर रखी है। हैदराबाद का एक ठेकेदार बडा काम किया था। भूगतान न मिलने से तीन दिन पहले आत्महत्या कर ली। बताया जाता है कि 10 करोड का भूगतान बाकी था। रेलवे के संबंधित अधिकारियों की परिक्रमा करने और उनके द्धारा मानसिक प्रताडना देने, अपने स्टाफ, लेबर, सप्लायर को पैसा न दे पाने के कारण आत्महत्या करने पर मजबुर हुआ। एक तरफ दावा किया जाता है कि रेलवे फायदा में है। फिर देश की 125 ट्रेनों को चलाने के लिए ड्राइवर ठेके पर लिए जा रहे है। ट्रेन से लेकर सारी चीजें सरकार की केवल ड्राइवर ठेकेदार का। किसको फायदा पहुंचाया जा रहा है। हर रोज लाखों जिंदगानियां ठेकेदार के ड्राइवर के हाथों में देना उचित होगा? शायद नहीं। ठेकेदारों के प्रलंबित भूगतान की समस्या रेलवे के अधिकारियों के भ्रष्टाचार की उपज है। बिना चढ़ावा के भूगतान की फाइल को हाथ तक नहीं लगाते। पैसों के दम पर अधिकारी अपनी बदली उसी जगह एक टेबल से दूसरी टेबल में करवा लेता है। अब इससे बडा भ्रष्ट्राचार के प्रमाण और क्या हो सकते है। बात हम पुणे रेलवे की कर रहे है। एक सिविल इंजीनियरिंग विभाग का एक मंडल इंजीनियर की बदली दूसरे डिविजन में हो गई थी। लेकिन यह बंदा मुंबई जाकर बडे अधिकारियों को चढ़ावा चढ़ाकर अपनी बदली पुणे में ही एक टेबल से दूसरे टेबल में करा लेता है। इस अधिकारी से रेलवे के सभी छोटे बडे अधिकारी, कर्मचारी नाखुश है। ठेकेदार तो परेशान हैं ही। सबको परेशान करने का मानो जन्मसिद्ध अधिकार बना लिया हो। अब मुंबई में छोटा मोटा चढावा तो चढता नहीं फिर उस चढ़ाए की सूत समेत वसूली ठेकेदारों, नीचले स्तर के अधिकारी, कर्मचारियों को परेशान करके करेगा। रेलवे का यही बिगडा हुआ सिस्टम सुधारने की जरुरत है। छोटी मछलियों को मारने से कुछ असर नहीं पडेगा। अगर मारना है तो ऐसे मगरमच्छों को मारने की जरुरत है।