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दोनों एकनाथ क्यों हुए अनाथ ?

पिंपरी- मोदी और अमित की जोडी वाली नई भाजपा में आयाराम-गयाराम वालों को सिर पर बैठाया जा रहा है और पुराने संगठनात्मक वफादार भाजपाईयों को दरकिनार किया जा रहा है. कल महाराष्ट्र भाजपा के 125 उम्मीदवारों की जारी लिष्ट से यह बात भी प्रमाणित हो चुकी है. पिंपरी चिंचवड शहर और महाराष्ट्र में भाजपा का झंडा उठाने वाला कोई नहीं था तब के एकनाथ पवार और एकनाथ खडसे का टिकट कटना पुराने भाजपाईयों को रास नहीं आया. मन में गुस्सा है, समय का इंतजार है. अगर समंदर शांत है तो समझो तूफान, ज्वार भाटा आने वाला है.
भोसरी से 2014 का चुनाव लड चुके पुराने भाजपाई एकनाथ पवार का इस बार टिकट काटा गया. उनकी जगह निर्दलीय विधायक महेशदादा लांडगे को टिकट दिया गया. ये वही लांडगे है जो पांच साल तक भाजपा के साथ रहे मगर भाजपा का सदस्यता तक ग्रहण नहीं की थी. टिकट के पीछे नहीं भागे ना ही किसी से सिफारिश की. केवल प्रचार में लगे रहे. दूसरी तरफ एकनाथ पवार मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के जनादेश यात्रा के साथ पिछले एक महिने से पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण किया. सबका रहने- खाने तथा हर सुख सुविधा की व्यवस्था की कमान संभाली. दिल्ली जाकर बहन स्मृति इरानी को रक्षा बंधन की लाज रखने की सौंगध याद दिलाई. लोकसभा चुनाव में अमेठी जाकर 15 दिनों तक बहन के लिए हर संभव मदद करके जीत का सेहरा भी पहनाया. नागपुर जाकर अपने राजनीतिक गुरु नितिन गडकरी की कई बार परिक्रमा की. नांदेड लोकसभा की सफल कार्यकुशलता की दुहाई भी भाजपा हाईकमान को दी. मगर एकनाथदादा पवार ये भूल गए कि ये अटल और अडवाणी की भाजपा नहीं जिनको वफादारों, पुराने भाजपाईयों की कद्र हुआ करती थी ये तो मोदी-अमित की भाजपा है इसमें केवल जिताऊ को सेहरा बांधा जाता है चाहे फिर वो चोरी, डकैती, हत्या का तथकथित आरोपी क्यों न हो? भाजपा ऐसी गंगोत्री है जिसमें डुबकी लगाने से सारे पाप धो जाते है. आज एकनाथ अपने ही घर में अनाथ हो गए. जिनके भरोसे राजनीति करते थे वो लोग सहारा नहीं दिया. यहां एक फिल्मी गीत याद आ रहा है कि…कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा…
महाराष्ट्र की राजनीति करने वाले एकनाथ खडसे अपना खून पसीना से भाजपा को सत्ता तक ले आए. जब सत्ता सुख भोगने की पारी आयी तो देवेंद्र छीनकर ले गए. भविष्य में कोई खतरा न बने इसलिए भोसरी के एक जमीन घोटाला के आरोप में मंत्रिपद से बर्खास्त कर दिए गए. इतना ही नहीं कल जारी टिकट की लिस्ट में उनका टिकट काटा गया. एकनाथ खडसे ने तो जांबाजी दिखाते हुए बागी होकर निर्दलीय नामांकन भर दिया. मगर क्या भोसरी के एकनाथदादा ऐसा साहस दिखा पाएंगे? शायद नहीं.क्यों कि वो आज भी भाजपा प्रेम बंधन में उलझे है.
चिंचवड विधानसभा के लिए भाजपा ने लक्ष्मण जगताप को टिकट दिया है. ब्रहामण चेहरा अँड सचिन पटवर्धन इच्छुक थे. संघ परिवार से पुराना नाता रहा. मगर किसी का जादू नहीं चला. हलांकि चिंचवड इलाके में बसे संघ परिवार और ब्राहमण समाज में नाराजगी का सुर दिख रहा है. मगर जगताप फिलहाल सेफ झोन में है. भोसरी में महेशदादा डेंजर झोन में अवश्य चल रहे है. शिवसेना को सीट न मिलने से भोसरी विधानसभा के शिवसैनिकों में जबर्दस्त गुस्सा देखने को मिल रहा है. कल यमुनानगर में शिवसेना पदाधिकारियों की एक आपातकालीन बैठक हुई. जिसमें यह निर्णय लिया गया कि महेशदादा के विरुद्ध काम करेंगे. भाजपा-युति के धर्म का पालन नहीं करेंगे. मातोश्री के फरमान को भी नहीं मानेंगे. किसी निर्दलीय उम्मीदवार का काम करेंगे. निर्दलीय उम्मीदवार विलास लांडे हो सकते है. पुराने भाजपाई भी नाराज दिख रहे है. उनकी भी गुप्त बैठक हुई. जिसमें कुछ भाजपा नगरसेवक भी थे. ये लोग भी निर्दलीय उम्मीदवार की मदद करने वाले है. पिछले 5 सालों से पीडित परेशान छोटे बडे व्यावसायिक भी महेशदादा के खिलाफ गोलबंद हो रहे है. जो उम्मीदवार महेशदादा को हराने का विकल्प बनेगा उसको हर संभव मदद पर्दे के पीछे से करने जा रहे है. टिकट लिस्ट जारी होने के बाद से पिछले दो दिनों से राष्ट्रवादी की तोप दत्ता काका साने और एकनाथदादा की जोडी साथ साथ दिख रही है. महेशदादा के विरुद्ध कोई खिचडी पक रही है इसमें तो कोई शंका नहीं.
अगर ये सारी नाराज ताकतें एकजुट हो गई तो महेशदादा की भैंस पानी में जाने से कोई नहीं बचा सकता. फिलहाल हमारी ऑखे तो दोनों अनाथ हुए एकनाथ पर टिकी है क्या गुल खिलाएंगे. एक बागी तो दूसरा भीतरघाती. जय श्रीराम…

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