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डॉ. देशमुख को वनवास और वाबळे को सिंहासन

महापौर की दरियादिली, डॉ.देशमुख वायसीएम में ही रहेेंगे
वायसीएम दुधारु गाय, भाजपा पदाधिकारी सारा दुध अकेले पीने की जुगाड में
पिपरी-पिंपरी चिंंचवड मनपा की जीवनदायनी वायसीएम हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ. मनोज देशमुख के समर्थन में महापौर कूद पडे है. महापौर ने कहा कि डॉ. देशमुख वायसीएम में अधीक्षक पद पर बने रहेंगे. उनको कहीं जाने की कोई जरुरत नहीं. इस बारे में वो खुद आयुक्त से बात करेंगे. महापौर ने देशमुख को फोन करके उनको इस्तीफा न देने की सलाह दी. साथ ही आश्‍वासन दिया कि अपमान व अन्याय नहीं होने देंगे.
मालूम हो कि सत्ताधारी भाजपा का एक पदाधिकारी, वैद्यकीय विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तथा प्रशासन की मिलिभगत से वायसीएम के अधीक्षक डॉ. देशमुख की बदली पिंपरी के वायसीएम में की गई. उपाधीक्षक डॉ. शंकर जाधव की बदली भोसरी के पालिका हॉस्पिटल में की गई. बदली की खबर लगते ही देशमुख अवकाश पर चलें गए. इसी बीच देशमुख के इस्तीफे की खबर आने लगी. जिजामाता हॉस्पिटल की नूतन इमारत का काम फिलहाल शुरु है. इधर देशमुख के रिटायरमेंट 5 महिने में होना है. जिजामाता में अधीक्षक पोस्ट नही है. देशमुख व जाधव की बदली के बाद उनकी जगह किसी अन्य डॉक्टरों की नियुक्ति भी नहीं हुई. मतलब रिटायरमेंट तक देशमुख को बाहर रखने की साजिश रची गई. इधर नगरसेवकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता इस बात की है कि इमरजेंसी में अगर किसी मरीज के लिए फोन करें तो किसको करें?
इधर 3 साल के मानधन (ठेकेदारी) के करारनामा पर आए पीजी डीम डॉ. राजेंद्र वाबळे को वायसीएम का सारा राजपाठ सौंपा गया. मतलब अपनों पर सितम गैरों पे रहम…..वायसीएम में भी कलयुगी रामायण की स्क्रिप्ट लिखी गई. देशमुख को वनवास और बाबळे को सिंहासन. माता कैकेयी के रोल में आग लगाने के लिए भाजपा का एक वरिष्ठ पदाधिकारी है. आयुक्त श्रावण हर्डीकर राजा दशरथ की भूमिका में हैै जो सत्ताधारियों के कहने पर देशमुख को वनवास भेजा .इधर भाजपा की बदनामी व इज्जत लुटते देख भाजपा की लाज व साख बचाने के लिए महापौर लक्ष्मण की भूमिका में डटे है.
इधर देशमुख ने अपने इस्तीफे के बारे में कहा कि अभी तक इस्तीफा नहीं दिया. मगर देने की मानसिकता बनी है.आयुक्त हमको कोई वेल्यू (कीमत) नहीं देते फिर बात किससे करें. वायसीएम में कोई अधिकार हमारे पास नहीं. सारे अधिकार को छीनकर डीम के हवाले किया गया. 4-5 महिने रिटायरमेंट बची है . मगर ऐसा लगता है कि जबरन समय से पहले बदली के रुप में रिटायर कर दिया गया.
सवाल है कि वायसीएम पीजी के लिए बनी है या फिर पीजी वायसीएम के लिए? पीजी के लिए 24 एमबीबीएस सीट की मान्यता मिली है जो दो सालों में 120 सीट तक पहुंच जाएगी. अंदरखाने की असली खेल क्या है? आओ समझाने की कोशिश करते है. वायसीएम एक दुधारु गाय है. लेबर सप्लाई ठेका से लेकर दवाईयों, मेडिकल औजार की खरीदपरोख्त का गोरखधन्धा है. एमबीबीएस की एक सीट पाने के लिए प्रायवेट मेडिकल कॉलेजों में 50 लाख रुपये का डोनेशन चल रहा है. वायसीएम के पीजी में 25 लाख की एक सीट गई तो सोचो इससे बडी मुफ्त की कमाई और भला क्या हो सकती है. यही कारण है कि वायसीएम में भाजपा का एक पदाधिकारी इन दिनों कुछ ज्यादा मेहरबान नजर आ रहा है.

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