पुणे-पुणे की रहने वाली 31 साल की रेखा सुतार ने पहली बार जब बाउंसर की यूनिफॉर्म पहनी तो उन्हें बहुत अजीब लगा। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी सलवार कमीज के अलावा कोई और ड्रेस नहीं पहनी थी। वह अपने घर से ट्राउजर और शर्ट पहनकर बाहर निकलीं तो पड़ोसी उसे घूर रहे थे। शुरुआती दिनों मेंअसहज लगा लेकिन अब उनके अंदर आत्मविश्वास आ गया है।
नशे में रहनेवाली महिलाओं की भी मदद करती हैं लेडी बाउंसर्स
रेखा ने बताया कि वह स्वामिनी लेडी बाउंसर्स में काम करती है। यह लेडी बाउंसर्स फर्म एक पूर्व ब्यूटिशन अमिता कदम ने दो साल पहले शुरू की थी। इसकी शुरुआत पांच लेडी बाउंसर्स से हुई थी और आज इसमें पचास लेडी बाउंसर्स काम कर रही हैं। ये सभी पुणे के पब और आयोजनों में सुरक्षा का काम करती हैं। पब और कार्यक्रम में सुरक्षा के दौरान महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को सबक सिखाने के साथ नशे में हो जाने वाली महिलाओं की मदद भी करती हैं।
सास ने दी अमिता को हिम्मत
अमिता ने बताया, ‘मेरी बहन के पति एक बाउंसर हैं। मैं उनके काम की बहुत प्रशंसक थी। मैंने कभी भी फीमेल बाउंसर्स के बारे में नहीं सुना था। वहीं मैंने यह भी पाया कि बार जाने वाली फीमेल, मेल बाउंसर्स के साथ खुद को असहज महसूस करती हैं, इसलिए मैंने एसएलबी की शुरुआत की।उन्होंने बताया कि इस काम में उनकी सास और पति ने उनकी बहुत मदद की। हालांकि महिलाओं को फीमेल बाउंसर के लिए तैयार करना बहुत बड़ी चुनौती थी। सबसे बड़ी परेशानी यह आई कि महिलाओं को देर रात तक काम करना पड़ता है।
29 साल की आरती भुवल ने बताया, ‘जब मैं पहली बार एक कार्यक्रम में गई और आधी रात को काम से लौटी तो मेरे पति ने मुझे यह नौकरी छोड़ने को कहा। अगली बार मेरी ड्यूटी नए साल की पार्टी में लगाई गई। मेरे पति राजी नहीं थे। अमिता मेरे घर आईं और उन्होंने परिवारवालों को समझाया। उन्होंने मेरी सुरक्षा और यात्रा की पूरी जिम्मेदारी लेने को कहा। उसके बाद से अब मुझे कोई समस्या नहीं होती।’अमिता ने कहा कि इन महिलाओं को सेल्फ डिफेंस, बातचीत और मैनेजमेंट स्किल की ट्रेनिंग दी जाती है। इस कारण महिलाएं खुद को सुरक्षित रखने के साथ ही दूसरों की सुरक्षा भी आसानी से करती हैं। उनके पास हर महीने लगभग बीस इवेंट्स के लिए कॉल आती हैं जिनमें लेडी बाउंसर्स की मांग की जाती है। महिलाओं के पास वर्कआउट का समय नहीं होता है। वे घर के काम को ही वर्कआउट मानती हैं। महिला बाउंसर्स का दिन दोपहर या शाम को शुरू होता है। कालंदी सूर्यवंशी ने बताया कि वह बस में अटेंडेंट का काम करती हैं। छात्राओं के माता-पिता बहुत खुश रहते हैं कि बस में फीमेल बाउंसर है।
लेडी बाउंसर्स ने कहा कि वे अपने काम से बहुत खुश हैं। उन्हें बहुत सम्मान मिलता है। इसके अवाला पब में ड्यूटी करने के लिए उन्हें हर महीने 10,000 से 15,000 रुपये और दूसरे इवेंट्स में काम करने के 8000 से 10,000 रुपये वेतन मिलता है। उन्हें आठ घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है।
नशे में रहनेवाली महिलाओं की भी मदद करती हैं लेडी बाउंसर्स
रेखा ने बताया कि वह स्वामिनी लेडी बाउंसर्स में काम करती है। यह लेडी बाउंसर्स फर्म एक पूर्व ब्यूटिशन अमिता कदम ने दो साल पहले शुरू की थी। इसकी शुरुआत पांच लेडी बाउंसर्स से हुई थी और आज इसमें पचास लेडी बाउंसर्स काम कर रही हैं। ये सभी पुणे के पब और आयोजनों में सुरक्षा का काम करती हैं। पब और कार्यक्रम में सुरक्षा के दौरान महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को सबक सिखाने के साथ नशे में हो जाने वाली महिलाओं की मदद भी करती हैं।
सास ने दी अमिता को हिम्मत
अमिता ने बताया, ‘मेरी बहन के पति एक बाउंसर हैं। मैं उनके काम की बहुत प्रशंसक थी। मैंने कभी भी फीमेल बाउंसर्स के बारे में नहीं सुना था। वहीं मैंने यह भी पाया कि बार जाने वाली फीमेल, मेल बाउंसर्स के साथ खुद को असहज महसूस करती हैं, इसलिए मैंने एसएलबी की शुरुआत की।उन्होंने बताया कि इस काम में उनकी सास और पति ने उनकी बहुत मदद की। हालांकि महिलाओं को फीमेल बाउंसर के लिए तैयार करना बहुत बड़ी चुनौती थी। सबसे बड़ी परेशानी यह आई कि महिलाओं को देर रात तक काम करना पड़ता है।
29 साल की आरती भुवल ने बताया, ‘जब मैं पहली बार एक कार्यक्रम में गई और आधी रात को काम से लौटी तो मेरे पति ने मुझे यह नौकरी छोड़ने को कहा। अगली बार मेरी ड्यूटी नए साल की पार्टी में लगाई गई। मेरे पति राजी नहीं थे। अमिता मेरे घर आईं और उन्होंने परिवारवालों को समझाया। उन्होंने मेरी सुरक्षा और यात्रा की पूरी जिम्मेदारी लेने को कहा। उसके बाद से अब मुझे कोई समस्या नहीं होती।’अमिता ने कहा कि इन महिलाओं को सेल्फ डिफेंस, बातचीत और मैनेजमेंट स्किल की ट्रेनिंग दी जाती है। इस कारण महिलाएं खुद को सुरक्षित रखने के साथ ही दूसरों की सुरक्षा भी आसानी से करती हैं। उनके पास हर महीने लगभग बीस इवेंट्स के लिए कॉल आती हैं जिनमें लेडी बाउंसर्स की मांग की जाती है। महिलाओं के पास वर्कआउट का समय नहीं होता है। वे घर के काम को ही वर्कआउट मानती हैं। महिला बाउंसर्स का दिन दोपहर या शाम को शुरू होता है। कालंदी सूर्यवंशी ने बताया कि वह बस में अटेंडेंट का काम करती हैं। छात्राओं के माता-पिता बहुत खुश रहते हैं कि बस में फीमेल बाउंसर है।
लेडी बाउंसर्स ने कहा कि वे अपने काम से बहुत खुश हैं। उन्हें बहुत सम्मान मिलता है। इसके अवाला पब में ड्यूटी करने के लिए उन्हें हर महीने 10,000 से 15,000 रुपये और दूसरे इवेंट्स में काम करने के 8000 से 10,000 रुपये वेतन मिलता है। उन्हें आठ घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है।