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पानी NOC प्रकरण में आयुक्त पूर्णसत्य जनता को बताएं- भापकर

आयुक्त बने नेताओं की कठपुतली, बिल्डरों की नाक दबाकर चुनावी फंड इकट्ठा करने की स्टंटबाजी

पिंपरी- अगर किसी सरकारी,गैर सरकारी संस्थान के हेड की भूमिका संदेह के घेरे में हो तो उस संस्थान के कामकाज पर उंगली उठना स्वभाविक है. पिंपरी चिंचवड महानगरपालिका में विवादित पानी एनओसी प्रकरण में आयुक्त श्रावण हर्डीकर संदेह के घेरे में है. सत्ताधारी स्थानीय नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर काम कर रहे है. शहर के नामचीन बिल्डरों को पानी का एनओसी रोकना और कुछ दिनों में एनओसी देना कठपुतली होने का ताजा उदाहरण है. अब सांप की माला खुद के गले में आया तो उसे पानी विभाग के एक अधिकारी के गले में पहनाकर बलि का बकरा बनाना यह दोहरा चरित्र जनता के सामने आ चुका है. पानी एनओसी प्रकरण में आयुक्त अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुनकर भारतीय संविधान की शपथ लेकर पालिका के असली मालिक जनता को पूर्ण सत्य बताने का क्या साहस दिखाएंगे? ऐसा सवाल सामाजिक कार्यकर्ता मारुति भापकर ने किया.
आओ समझने की कोशिश करते है कि बिल्डरों को पानी का एनओसी देने-रोकने के पीछे असली खेल क्या है? किसी बांधकाम की मंजूरी के लिए पानी का एनओसी अनिवार्य होता है. बिल्डर बांधकाम के लिए पानी का इस्तेमाल कहां से करेगा,बताना जरुरी होता है. जिन बिल्डरों को एनओसी नहीं मिलता वे बांधकाम नही कर सकते. चिंचवड विधानसभा के क्षेत्र में कुछ बडे बिल्डरों का बांधकाम शुरु है. 6 जून 2018 को पालिका प्रशासन की ओर से बिल्डरों को पानी का एनओसी न देने का निर्णय आता है. इन बिल्डरों का बडे प्रोजेक्ट पिंपलेगुरव, पिंपलेसौदागर, ताथवडे, रावेत, वाकड, पुनावले, मामूर्डी, किवळे परिसर में है. 13 जून 2018 को पालिका स्थायी समिति सभा में एनओसी बंद का प्रस्ताव पारित कराया जाता है. शहर के विकास कामों से संबंधित आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार स्थायी समिति को है. लेकिन किसी को एनओसी बंद करने का अधिकार इस समिति को नहीं. इस संदर्भ में श्री भापकर ने 14 जून 2018 को एक पत्र आयुक्त को लिखा. शिवसेना के गुटनेता राहुल कलाटे समेत अन्य विरोधी नेता भी आयुक्त को इस संदर्भ में पत्र लिखा. इसी बीच भाजपा विधायक और राहुल कलाटे के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है. 4 और 5 अक्टूबर 2018 को दो दिन के लिए 15 बिल्डरों को पानी एनओसी दिया जाता है. 3 महिना एनओसी बंद के बाद अचानक स्पेशल दो दिन के लिए बडे बिल्डरों को देने का काम होता है. इस बारे में जब-जब पत्रकारों ने पूछा तो आयुक्त हाथ ऊपर करते हुए कहा कि एनओसी बंद और फिर चालू करने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं. उनकी ओर से ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया. पानी विभाग के कार्यकारी अभियंता रामदास तांबे अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसा किया है. इस बारे में श्री तांबे को नोटीस भेजकर खुलासा मांगा गया है. ऐसा आयुक्त ने अर्धसत्य बोलकर मामले को ठंडे बस्ते में डाला.
श्री भापकर ने आयुक्त के इस लीपापोती पर सवाल खडा करते हुए पूछा कि आयुक्त जनता को बताएं कि किस नेता के इशारे पर ऐसा मौखिक आदेश दिया और लिया गया? आयुक्त यह भी बताएं कि किन बडे बिल्डरों को एनओसी दी गई? रामदास तांबे जैसा छोटा अधिकारी इतना बडा निर्णय नहीं ले सकता यह भी सबको पता है. अब भोसरी विधानसभा में भी ऐसा ही प्रयोग किया जा रहा है. बिल्डरों को नोटीस देने का काम शुरु है. भापकर ने कहा कि बांधकाम व्यावसायिक को एनओसी देना ना देना इस पर उनकी कोई रुचि नहीं. आयुक्त किसके हाथ की पठपुतली हैं? किसके दबाव में काम कर रहे है? किन बिल्डरों को अभय दान दे रहे है? मौखिक आदेश देने के पीछे क्या मंशा छुपी है? इस बारे में पूर्णसत्य बताएं? इसके पीछे असली खेल चुनावी फंड इकट्ठा करना है. बिल्डरों की नाक दबाकर फंड निकालना, आयुक्त द्धारा मौखिक आदेश अपने अधिकारियों को देना, गला फंसने पर अधिकारियों को बलि का बकरा बनाना यह पूर्णसत्य है. ऐसा भापकर का मानना है.

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