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बिहार में एनडीए में क्यों हो रही है रस्साकशी?

बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले जोर आजमाईश शुरू हो गई है. जेडीयू और बीजेपी के नेताओं के तरह-तरह के बयान आ रहे हैं. कई चीजें ऐसी हैं जो नीतीश कुमार को चुभ रही हैं. जैसे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा ना मिलना. यह एक ऐसा मुद्दा है जो नीतीश कुमार के लिए काफी संवेदनशील है और जरूर उनके मन में इस बात की टीस रहती होगी कि बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद भी बिहार को ये पैकेज नहीं मिल पाया. कुछ ऐसा ही मुद्दा है पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं दिया जाना. नीतीश कुमार के लिए दिक्कत ये भी है कि आरजेडी अब इसे मुद्दा बना रही है और तेजस्वी यादव इन मुद्दों को लेकर काफी हमलावार हैं.यदि बिहार की लोकसभा सीटों को देखें तो 40 सीटों में से 6 रामविलास पासवान के खाते में जाएंगी और 4 सीटें कुशवाहा की पार्टी को मिलेंगी. पिछली बार कुशवाहा ने 4 सीटें लड़ कर 3 सीटों पर सफलता हासिल की थी. इस तरह बिहार में बची 30 सीटों पर जेडीयू और बीजेपी के बीच मारामारी होना तय है.बिहार में दिक्कत यह है कि नीतीश कुमार ने चुनाव किसी और के साथ लड़ा और बीच में पलट कर सरकार किसी और के साथ बनाई. 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो हालात समझ में आते हैं कि नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच समस्या क्या है. 2014 का चुनाव बीजेपी, पासवान की एलजेपी और कुशवाहा साथ मिल कर लड़े थे जिसमें बीजेपी को 22, पासवान को 6 और कुशवाहा को 3 सीटों पर सफलता मिली थी जबकि जेडीयू को 2, आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2 और एनसीपी को 1 सीट मिली थी.अब नीतीश कुमार के सामने दिक्कत ये है कि क्या बीजेपी बिहार की 22 सीटों पर अपना दावा छोड़ देगी और किन हालात में जेडीयू को अधिक सीटें दी जाएंगी. क्या बीजेपी अपने जीते हुए सांसदों का टिकट काट देगी? उसी तरह विधानसभा की हालत देखें तो 2015 में आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. जेडीयू की तरफ से यह दलील दी जा रही है कि 2009 में जेडीयू 25 सीटों पर लड़ चुकी है और बीजेपी 15 सीटों पर और इस बार जेडीयू इसी फार्मूले को दोहराना चाहती है. मगर फिलहाल यह संभव होता नहीं दिख रहा है. आखिर बीजेपी अपने जीते हुए सांसदों को क्या कह कर टिकट काटेगी?
यदि ऐसा हुआ तो पार्टी में बगावत का खतरा हो सकता है जिसका जोखिम बीजेपी कभी नहीं उठाना चाहेगी. यही वजह है कि बीजेपी नेताओं के तेवर बदले हुए हैं और नीतिश कुमार भी अपना पत्ता नहीं खोल रहे हैं. तो फिर नीतीश कुमार के पास विकल्प क्या बचता है? क्या वो बीजेपी से कम सीटें लोकसभा में लड़ना चाहेंगे या फिर उनके पास कोई और फार्मूला है? इन्हीं बातों को देखते हुए जेडीयू के नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि बिहार में जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में है और नीतीश कुमार के ही इसके सबसे बड़े नेता हैं. और बिहार में इस खेल का मजा उठा रहे हैं आरजेडी, कांग्रेस, एनसीपी और मांझी की पार्टी.
तो क्या बिहार में लोकसभा चुनाव के पहले एक और उठापटक देखने को मिलेगी या फिर भाई विधानसभा में तो बड़ा भाई बना रहेगा मगर लोकसभा चुनाव में उसे छोटा भाई बनना पड़ेगा. मगर नीतीश कुमार भी राजनीति के कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं इसलिए अभी उनकी पार्टी के अन्य नेताओं की तरफ से बयानबाजी शुरू हुई है. बिहार के बीजेपी नेता अपने बयान में थोड़ी सावधानी बरत रहे हैं. उन्हें नहीं मालूम है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व क्या तय करेगा. मगर इतना तो तय है कि आखिर बीजेपी कितना पीछे हट सकती है. यानी मुकाबला काफी मजेदार होने वाला है कि क्या जेडीयू और बीजेपी के बीच कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला होगा? इससे इuकार नहीं किया जा सकता है. या फिर कुशवाहा एनडीए से निकल जाएं जैसा कहा जा रहा है तो 6 सीटें जेडीयू और बीजेपी के बीच बांटने के लिए बढ़ जाएंगी. फैसला जो भी हो, 2019 में बिहार का लोकसभा चुनाव एक बार फिर कुछ नए नतीजे लेकर सकता है जैसा पिछली बार भी हो चुका है.

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