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डिंपल का नाम कटा,जयंत चौधरी का जुड़ा,अखिलेश की बडा सियासी दांव

लखनऊ-राज्यसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने तीन नाम फाइनल कर दिए हैं। कई दिनों से चल रही सियासी अटकलों के बाद ये तीनों चेहरों पर मुहर लगी है। इसमें देश के माने-जाने वकील कपिल सिब्बल, ठङऊ अध्यक्ष जयंत चौधरी और पार्टी के मुस्लिम फेस जावेद अली शामिल है। वहीं, अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के राज्यसभा जाने की अटकलों पर विराम लग चुका है। हालांकि ये तीन नाम तय होने के पीछे का गणित भी समझना जरूरी है क्योंकि डिंपल यादव का नाम आखिरी वक्त कटा है।

 

क्या बीजेपी कर सकती थी खेल?

समाजवादी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, डिंपल यादव और कपिल सिब्बल का नामांकन एक साथ ही होना था। दोनों के दस्तावेज भी तैयार कर लिए गए थे, लेकिन आखिरी वक्त में डिंपल यादव का नाम लिस्ट से हट गया। बुधवार को पार्टी ने कपिल सिब्बल, डिंपल यादव और जावेद अली को एक साथ पर्चा दाखिल कराने की तैयारी में थी। सभी के दस्तावेज भी तैयार कर लिए गए थे। सिर्फ तीनों नेताओं को एक साथ विधानसभा जाना था, लेकिन तभी जयंत चौधरी को लेकर पार्टी के भीतर एक चर्चा चली कि अगर इस वक्त जयंत चौधरी को नहीं भेजा गया तो बीजेपी कोई खेल कर सकती है।

 

ये बिगाड़ सकते थे खेल!

फिर बुधवार दोपहर को अचानक ही डिंपल यादव के पर्चा भरने की चर्चाओं पर विराम लग गया और तय हुआ कि जब अखिलेश यादव विधानसभा से लौटेंगे तब इस पर फैसला लेंगे। चर्चा ये थी कि गुरुवार को भी डिंपल पर्चा भर सकती हैं। वहीं, देर शाम जयंत चौधरी की इच्छा भी जानी गई। जयंत के चुनिंदा लोगों से पूछा गया तो उनकी तरफ से ग्रीन सिग्नल था। कहा गया कि अगर डेढ़ साल बाद ही राज्यसभा जाना है तो अभी क्यों नहीं। इससे एक ओर गठबंधन का नुकसान होने से बच सकता है। दूसरी ओर बीजेपी के खेल का डर भी सता रहा था कि कहीं ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव सपा का खेल न बिगाड़ दें।

 

ऐसे में देर रात को अखिलेश यादव ने जयंत को भेजने का फैसला किया। आरएलडी के सभी विधायकों को पार्टी के एक नेता के घर बुलाया गया और उनके दस्तावेज तैयार करने को कहा गया। सुबह अखिलेश यादव ने आरएलडी के विधायकों से मुलाकात की और तय हो गया कि जयंत ही राज्यसभा जाएंगे।

 

क्या अखिलेश ने बड़ा सियासी दांव चला है?

ये भी कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का कदम उठाकर बड़ा सियासी दांव चला है। इससे एक तरफ जयंत और अखिलेश यादव की दोस्ती को 2024 के लोकसभा चुनाव में मजबूती देगा। वहीं, जयंत चौधरी आठ साल के बाद संसद पहुंचेंगे। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जयंत चौधरी संसद से बाहर हैं और अब जाकर सपा के समर्थन से राज्यसभा पहुंचेंगे। इसका सियासी संदेश भी पश्चिमी यूपी में जाएगा, जिसका राजनीतिक लाभ 2024 में मिल सकता है।

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