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कृष्ण प्रकाश की बदनामी का षडयंत्रकारी कौन? आयुक्त ने दिए जांच के आदेश

पिंपरी- पिंपरी चिंचवड शहर के पूर्व पुलिस कमिश्‍नर कृष्ण प्रकाश की बदनामी वाला लेटर बम वायरल होते ही चर्चाओं का बाजार सजने लगा है। जितना मुंह उतनी बात,बिना आधार,बिन पेंदी का लोटा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। ठोस प्रमाण किसी के पास नहीं। हमेशा की तरह लोग कान को नहीं,कौए के पीछे भाग रहे। कमिश्‍नर जब तक है ठीक है,तबादला हुआ तो बुराईयों का अंबार लग जाता है। प्रथम पुलिस कमिश्‍नर पद्नाभन के ऊपर इसी तरह कीचड़बाजी हुई,आज तक कोई माई का लाल आरोपों को साबित नहीं कर पाया। एपीआई डॉ.अशोक डोंगरे के नाम से फर्जी हस्ताक्षर से पत्र वायरल होता है कि कृष्ण प्रकाश के लिए 200 करोड़ रुपये की उगाही की गई। कुछ पत्रकारों के बीच बंदरबांट हुआ। उगही में कुछ पुलिस अधिकारियों को लगाया गया। अशोक डोंगरे ने खंडन किया कि यह पत्र और हस्ताक्षर उसके नहीं है। किसी षड़यंत्रकारी ने वायरल किया। ये षड़यंत्रकारी कौन है। पुलिस विभाग से है,या मीडिया क्षेत्र से कोई है,इसकी जांच होनी चाहिए और षड़यंत्रकारी बेनकाब होने चाहिए और दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए। क्योंकि एक कर्मठ-तेजतर्रार पुलिस कमिश्‍नर,मीडिया,पुलिस विभाग,सामाजिक कार्यकर्ता,बिल्डरों की बदनामी से जुडा मामला है। हम किसी की वकालत नहीं कर रहे,अगर आरोप साबित होते हैं तो संबंधित पर कानूनी उचित कार्रवाई होनी ही चाहिए।

 

केवल बदनामी के लिए 200 करोड़ रुपये के आरोप का वायरल पत्र: कृष्ण प्रकाश

पुलिस आयुक्त के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान से संबंधित अशोक डोंगरे के नाम का एक फर्जी पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। यह पत्र पूरी तरह से झूठा है और इस संबंध में सहायक पुलिस निरीक्षक डॉ.अशोक डोगरे ने खुद पुलिस आयुक्त अंकुश शिंदे के पास लिखित शिकायत दर्ज कराई है,मामले की जांच की मांग की है, यह स्पष्ट है कि पत्र केवल मुझे बदनाम करने के लिए लिखा गया था। ऐसा करने के प्रयास अतीत में दोहराए गए हैं और असफल रहे ह््ैं। चूंकि पिंपरी चिंचवड़ कमिश्नर को लोगों का सबसे ज्यादा प्यार,स्नेह और आशीर्वाद मिला है,मैं ऐसे असंतुष्ट लोगों के आरोपों पर बिना ध्यान दिए कानूनी कार्रवाई करने पर ध्यान दूंगा। मैंने ईमानदारी और पुलिस बल की छवि को उंचा,उज्जवल कर सका,इसको दाग लगे ऐसा मैं कभी सोच नहीं सकता। बदनामी करने वाले लोगों पर कानूनी कार्रवाई हो ऐसी मेरी कोशिश रहेगी। ऐसा खुलासा पूर्व पुलिस आयुक्त कृष्ण प्रकाश ने किया है।

 

डॉ.अशोक डोंगरे ने लिखा पुलिस आयुक्त को पत्र:

वायरल पत्र और हस्ताक्षर फर्जी है। बदनाम करने की साजिश है। इसकी जांच होनी चाहिए। कृष्ण प्रकाश और मेरी छवि को धूमिल,बदनाम करने की साजिश रची गई,इस बारे में योग्य कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसी मांग पुलिस आयुक्त से डॉ.डोंगरे ने की है।

 

पुलिस आयुक्त अंकुश शिंदे ने दिए जांच के आदेश:

नए पुलिस कमिश्‍नर अंकुश शिंदे ने इस प्रकरण की जांच के आदेश दिए है। आयुक्त ने कहा कि डॉ.अशोक डोंगरे का शिकायत पत्र प्राप्त हुआ,आरोप गंभीर है,इसकी जांच के लिए अपर पुलिस आयुक्त संजय शिंदे को आदेश दिए गए है।

 

कृष्ण प्रकाश का कार्यकाल कैसा रहा?

तात्कालीन पुलिस कमिश्‍नर कृष्ण प्रकाश इस शहर में जीरो टॉलरेंस की संकल्पना लेकर आए थे। कुकुरमुत्ते की तरह उगे सारे अवैध धंधों को बंद कराया। नियंत्रित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा पथक गठित किया। खाकी हो या खादी गलतियों की माफी नहीं दी,सब पर कार्रवाई की। सेवा विकास बैंक घोटाले प्रकरण में साहसपूर्ण कार्रवाई की। आरोपियों को जेल में ठूंसा। नगरसेवक,नगरसेविका हो या विधायक पुत्र किसी को नहीं बक्शा। पुलिस विभाग के भ्रष्ट कर्मचारी,अधिकारियों पर निलंबन जैसी कार्रवाई की गई। आम हो या खास कृष्ण प्रकाश का दरबार सबके लिए खुला रहा। मोबाईल नंबर जनता के बीच सार्वजनिक किया गया ताकि संकट की घडी में लोग डायरेक्ट संपर्क कर सकें। शहर में क्राइम का ग्राफ नीचे लुढका। गिरोहबाजों पर मकोका,तडीपार जैसी कार्रवाई हुई। शहर में अमन,चैन का माहौल बना। अपराधियों,अवैध धंधे वालों,कुछ खाकी-खादी वालों को नागवार गुजरने लगी,कृष्ण प्रकाश इनके आंखों में चुभने लगे। गोलबंदी शुरु होने लगी,हटाने के लिए हाईलेवल की मीटिंग होने लगी। मुख्यमंत्री,गृहमंत्री के पास नाकारात्मक पत्राचार भेजने का सिलसिला शुरु हुआ। जमींन विवाद,चाकण एमआयडीसी स्क्रैप माल धंधे में गलाकाट जंग जैसे मुद्दें को गेंद की तरह उछाला गया।

 

जमींन प्रकरण में पीडित अबतक शिकायत क्यों नहीं की?

कृष्ण प्रकाश मीडिया को करीब रखते थे यह सत्य है,लेकिन केवल सुर्खियों में बने रहने के लिए नहीं बल्कि मीडिया को शहर के बारे में चप्पे चप्पे की जानकारी होती है,सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसलिए जोडा कि समाज की बुराईयों के बारे में जानकारी हासिल करना था। जमींन विवाद के मसले में कृष्ण प्रकाश का स्टैंड किलियर था कि पहले पुलिस स्टेशन,फिर एसीपी-डीसीपी के पास फाईल और सुनवाई हो,अगर किसी को न्याय फिर भी न मिले तो उनसे लोग मिल सकते है। अगर जमींन प्रकरण में किसी को दमदाटी दी गई,जबरन जमींन दिलाई गई या फिर हस्ताक्षर करवाए गए तो एक भी पीडित व्यक्ति खुलकर सामने क्यों नहीं आया? कोर्ट का दरबाजा क्यों नहीं खटखटाया? मनगढत कहानियां फिल्मों में तो अच्छी लगती है लेकिन असली जीवन में कड़वी दवा के समान होती है। अगर तात्कालीन आयुक्त कृष्ण प्रकाश का डर था तो अब तबादला हो गया,पीडित लोग खुलकर बाहर क्यों नहीं आते? नए पुलिस कमिश्‍नर अंकुश शिंदे से शिकायत करें जांच की मांग करें,जैसे एपीआई डॉ.अशोक डोंगरे ने जांच की मांग की है। सांच को आंच क्या?

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