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कैलास कदम के सामने कांग्रेस को पुर्नजीवित करने की चुनौति

पिंपरी-पिंपरी चिंचवड शहर कांग्रेस इन दिनों हासिए पर चली गई है। कांग्रेस का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ता उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। पिछले 2017 के चुनाव में कांग्रेस को शुन्य मिला। मतलब एक भी नगरसेवक निर्वाचित नहीं हो सका। इस शहर में कांग्रेस की तूती बोला करती थी,लेकिन वह जमाना प्रो.रामकृष्ण मोरे का हुआ करता था। मनपा में सत्ता का स्वाद भी चखा।महाराष्ट्र में 15 साल लगातार सत्ता सुख का रसपान भी की। शहर कांग्रेस आज मृतशैया पर पर लेटी है। तीन महिने बाद पालिका चुनाव का बिगुल बजने वाला है। ऐसी खराब परिस्थति में कैलास कदम को कांटों भरा ताज पहनाया गया है। जी हां! पिंपरी चिंचवड शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कैलास कदम की नियुक्ति की गई है।

 

कांग्रेस संगठन बिखरा,दिग्गज नेताओं का पलायन

कांग्रेस का संगठन पूरी तरह बिखर चुका है।कई स्थानीय दिग्गज नेता भाऊसाहेब भोईर,श्रीरंग बारणे,हनुमंत गावडे पार्टी छोडकर दूसरी पार्टी का दामन थाम चुके है। अब तक इस पद पर रहे सचिन साठे कांग्रेस की रोशनी जलाकर रखे थे। लेकिन उनकी भी अपनी कुछ अभिलाषा थी जो पूरी नहीं हो सकी। आश्वासन का घूंट कब तक पीते रहते। आखिरकार उनका भी कांग्रेस प्रेम का मोहभंग हो गया और शहर अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।

 

कैलास कदम कोई चमत्कार करेंगे,कहना मुश्किल

कैलास कदम पालिका में विरोधी पक्षनेता रह चुके है। खराडवाडी प्रभाग से इस बार कांग्रेस टिकट पर किस्मत अजमाएंगे। लेकिन चुनाव भाजपा-राकांपा के बीच ही लड़ा जाएगा। जनता बाकी पार्टियों को कितना महत्व देगी यह कहना मुश्किल है। कांग्रेस,शिवसेना,मनसे सभी पार्टियों की वर्तमान हालात बेहद पतली है। कैलास कदम एक कामगार नेता भी है। कामगारों की फौज उनके पास है इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन पालिका चुनाव आपसी संबंध,धनबल,शक्तिबल पर आधारित होता है। तीन महिने में कैलास कदम कोई चमत्कार कर सकेंगे,इसकी उम्मीद कम है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडने को कोई तैयार नहीं। पिछले चुनाव में कई प्रभाग में कांग्रेस को उम्मीदवार तक नहीं मिले। दूसरी ओर भाजपा फिर से मनपा पर सत्ता काबिज करने का कोई कसर बाकी नहीं रखेगी। पैसों की बरसात करना पडे तो वह भी करेगी। पिछले 2017 का चुनाव इस बात की पुष्ठि करता है। महाराष्ट्र की गद्दी पर बैठी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सत्ता पाने के लिए ऐढी चोटी का जोर लगा रही है। लेकिन भाजपा के विरोध में बोलने की जब बात आती है तो बगली झांकने लगती है। शहर राष्ट्रवादी के स्थानीय नेता पालिका में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ठेकेदार है। मुंह खोला तो केवल आर्थिक नुकसान के और कुछ नहीं हासिल होगा। इसलिए तेरी भी चुप मेरी भी चुप की भूमिका अच्छी लगती है। भाजपा के विरोध में माहौल बनाने में राष्ट्रवादी फेल हो चुकी है। केवल शरद पवार-अजित पवार की बैसाखियों से नदिया के पार नहीं हो सकते।

 

कैलास कदम चुनाव हारे तो भूली बिसरी गीत

कैलास कदम अगर अपना खाता खोल पाते हैं तो किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। लेकिन उनके सामने मुख्य विरोधी प्रतिद्धंदी गीता मंचरकर है। जिसके साथ रक्त रंजित राजनीति दुश्मनी चल रही है। दोनों एक दूसरे से हिसाब किताब चुकाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। कैलास कदम का राजनीतिक कैरियर दांव पर लगा है। इस बार का चुनाव हारे तो भूली बिसरी गीत हो जाएंगे। अब देखना होगा कि कैलास कदम कांटों भरे ताज को फूलों भरे ताज में कैसे परिवर्तित करते हैं।

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