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जलपर्णी के नाम पर नेता,ठेकेदार कब तक खाएंगें हराम की रोटियां

पिंपरी- पिंपरी-चिंचवड़ के लोगों को परेशान कर रही जलकुंभी की समस्या चार माह बाद भी जस की तस बनी हुई है। दावे कितने भी किए जा रहे हो लेकिन वर्तमान परिस्थिति यही है कि नदियां जलकुंभी की कैद में है और ठेकेदार बरसात आने का इंतजार कर रहे है। ताकि बरसात के पानी से जलकुंभी आपोआप बह जाए और ठेके का सारा पैसा बिना किसी परिश्रम के हजम किया जा सके। नदियों के स्वच्छ होने जलकुंभी से नदियों की मुक्ति का दावा करने वाले स्थानीय नेताओं के पास शर्म लाज नाम की अब कोई चीज बची नहीं। जो चीज आम जनमानस प्रत्यक्ष जाकर देख सकता है उस पर भी आंख में धूल झोंकने का काम करते है,और इनके गोबर भक्त,अंधभक्त कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर चेहरा मोहरा चमकाने में लगे रहते है।

 

जनप्रतिनिधियों,अधिकारियों और ठेकेदारों के अर्थ-हितों से उपजे इस मुद्दे को जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है। बारिश शुरू होने पर जलकुंभी बह जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक काम का भुगतान नहीं हो जाता तब तक समस्या दूर नहीं होगी। पिंपरी चिंचवड शहर और पुणे शहर से होकर बहने वाली इंद्रायणी,मुला,पवना नदियां सदियों से बिना किसी उपचार के रसायनों और सीवेज गंदे पानी का निर्वहन करती हैं। इसलिए जहां नदियों का प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है,वहीं नदी घाटी भी जलकुंभी से पूरी तरह से ढकी हुई है। बदबू व मच्छरों के प्रकोप से नागरिक परेशान हैं। नगर पालिका द्वारा अपेक्षित कार्रवाई नहीं की जा रही है, क्योंकि सब गोलमाल है। इसका कारण अधिकारियों,जनप्रतिनिधियों और ठेकेदारों का अर्थतंत्र बताया जा रहा है।

 

जब बारिश शुरू होती है तो जलकुंभी बह जाती है। फिर इन कामों के लिए मोटी रकम बिना मेहनत पालिका तिजोरी से निकाल ली जाती है। इस तरह सालों से नगर पालिका को लूटने की साजिश की जा रही है। कुछ दिन पहले उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने पिंपरी नगर पालिका को जलकुंभी को तुरंत हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद भी कोई हलचल नहीं हुई। महापौर ने भी स्वास्थ्य विभाग को आड़े हाथों लिया था। इसका कोई असर नहीं हुआ। स्वास्थ्य प्रमुख डॉ.अनिल रॉय के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। फिर भी नतीजा बेअसर रहा। स्थायी समिति की बैठक में स्वास्थ्य विभाग की क्लास ली गई। जलपर्णी का मामला सुलझने तक स्थायी समिति के कार्य को स्थगित करने की घोषणा करते हुए बैठक को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया। लेकिन अगले हफ्ते आते आते दावे दम तोड दिया।

 

दरअसल बाद की बैठक में किसी ने जलकुंभी का मुद्दा नहीं उठाया। जब आयुक्त राजेश पाटिल ने 2 करोड़ रुपये के आपातकालीन व्यय का प्रस्ताव रखा तो समिति ने 4 करोड़ रुपये के खर्च को मंजूरी दी। इसके तहत पांच अलग-अलग टेंडर जारी किए गए। जिन नेताओं,सत्ताधारियों का नगर पालिका पर प्रभाव था,उन्होंने अपने-अपने पदों पर एक-एक टेंडर छीन लिए। कहा जा रहा है कि जलकुंभी हटाने का काम चल रहा है। नदी बेसिन से जलकुंभी को हटाने का काम चल रहा है। कसारवाड़ी की तरफ से काम शुरू किया गया था। हैरिस ब्रिज के साथ-साथ होटल महाराजा की तरफ से काम बना हुआ है। बोपखेल का काम प्रगति पर है। जलकुंभी को दूर करने का यह कार्य जल्द पूरा हो जाएगा। ऐसा दावा ह क्षेत्रिय कार्यालय आरोग्य अधिकारी रमेश भोसले का है।

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