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महाराष्ट्र के किसान बर्बाद, सड रही सब्जियां, खा रहे जानवर


पुणे- कोरोना लॉकडाउन और संचारबंदी के दौर में सबसे ज्यादा असर किसानों पर पडा है। महाराष्ट्र के किसान पूरी तरह बर्बाद हो गए ऐसा कहना गलत नहीं होगा। खेतों में तैयार हरी सब्जियां सड रही है या फिर उसे जानवर खा रहे है। ट्रान्सपोर्ट बंद होने की वजह से कोई व्यापारी सब्जियां खरीदने को तैयार नहीं। दूध की बात करें तो 34 रुपये किलो बिकने वाला दूध आज 18 रुपये में बिक रहा है। ऐसी जानकारी पिंपरी चिंचवड शहर के सामाजिक कार्यकर्ता मारुति भापकर जो लॉकडाउन के चलते अपने मूलगांव श्रीगोंदा (अहमदनगर) में फंसे है वहां से आंखों देखा हाल हमारे संवाददाता को बताया।
आओ सिलसिलेवार बताते हैं कि सब्जियों का भाव किसानों को कितना मिलता है और वही सब्जी शहर में खुदरा विक्रेताओं के पास आते आते कितने दाम में बेची जाती है।
1) बैंगन किसानों के पास खेतों में सड रहा है। जबकि शहरी भाग में 80 रुपये किलो बिक रहा है।
2)ककडी किसानों के पास खेतों में सड रही है। शहरों में 60 रुपये किलो बिक रही है।
3)अंगुर किसानों से 10 रुपये किलो खरीदा जाता है और शहरी भार में 100 रुपये का डेढ किलो है।
4) तरबुज किसानों से 10 रुपये किलो खरीदा जाता है। शहरों में 25 रुपये किलो बिक रहा है।
5) कलिंगड किसानों से 4 रुपये किलो लेकर शहरों में खुदरा विक्रेता 20 रुपये किलो बेच रहे है।
6) फूल गोबी किसानों के पास खेतों में सड रहा है शहरों में 50 रुपये किलो बिक रहा है।
7) प्याज किसानों से 8 रुपये किलो खरीदकर शहरी भागों में 30 रुपये किलो बेचा जा रहा है।
8) दुध किसानों से 18 रुपये लिटर खरीदकर शहरों में 60 रुपये लिटर बेचा जा रहा है।
किसान की जो सब्जियां सड रही है उसे जानवर खा रहे है। दुध की बात करें तो किसान दूध के होलसेल व्यापारी को फ्री में दुध देने का तैयार है उसके बदले में केवल अपने जानवरों का चारा देने की प्रार्थना कर रहे है। दुध कंपनियां सस्ते में दूध खरीदकर पावडर बनाने का काम कर रही है। बाद में उसे 150-200 रुपये किलो बेचते है।
किसान आखिर बर्बादी की ओर क्यों बढ रहा है? लॉकडाउन से पूर्व सरकारों ने नियोजन नहीं की। किसानों का माल उठाने वालों का चैन टूट गया है। वाहनों की आवाजाही बंद है। किसानों से कम खरीदी की वजह से शहरों में सब्जियों का आवक कम होने से दाम आसमान छूने लगे है। इस कालाबाजारी को रोकने के लिए जिला प्रशासन, राज्य सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। किसानों के खेत का माल व दूध खरीदने की योजना बनानी चाहिए। अगर किसान को खेत से आय नहीं मिलेगा तो वो कंगाली की ओर बढेगा और लागत नहीं मिलने पर आत्महत्या करने पर मजबुर होगा। राज्य सरकार को तत्काल किसानों की इस गंभीर समस्या की ओर बिना विलंब ध्यान देने की जरुरत है। ऐसी मांग मारुति भापकर ने की है।

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